“पचास साल से भी अधिक समय होने के बावजूद, स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड, “सेल” का ध्वजवाहक कहलाने वाला, कईयों बार राजभाषा और प्रधानमंत्री ट्रॉफी हासिल करने वाला भिलाई इस्पात संयंत्र, आज भी बुनियादी समस्याओं से घिरा हुआ है! उत्पादन के बढ़ने के साथ, श्रमिकों की बुनियादी सुविधाएँ नहीं मिलना भी बढ़ोतरी ही हुई है ?”आवासीय समस्या बरकरार :
आवासीय समस्याओं को लेकर गत वर्ष घर-घर का सर्वे कर आवासीय समस्याओं का आंकलन कर समस्याओं को भिलाई इस्पात संयंत्र नगर प्रशासन के समक्ष प्रस्तुत किया गया था। जिस पर तत्कालीन नगर प्रशासन टाउन एडमिनिस्ट्रेशन एंड सर्विसेस ने भी त्वरित कार्यवाही कर समस्याओं से निदान का आश्वासन प्रदान किया था।
आज भी आवासो में वाटर-सीपेज की समस्या :
किए गए सर्वेक्षण में, सबसे अधिक सीपेज की समस्या का आकलन किया था, जिसको प्रमुखता से GM टाउन एडमिनिस्ट्रेशन के सम्मुख रखा गया था। अधिकांश आवासों में वर्षा ऋतु प्रारंभ होते ही घर की दीवारों पर पानी का सिलन एवं दीवारों में बिजली का करंट लीकेज की समस्या आम है। जो कार्मिकों एवं उनके परिवारों के स्वास्थ्य एवं मानव हानि की दुर्घटना का बड़ा कारण कभी भी बन सकता है। जिसकी प्रतिपूर्ति केवल बजट की कमी कहकर पूर्ण नहीं किया जा सकता।यह स्पष्ट माना जाता है, कि कार्मिकों की आवास समस्या संयंत्र के उत्पादन, कर्मियों के स्वयं व परिवार की सुरक्षा, स्वास्थ्य, एवं संयंत्र के उत्पादन से जुड़ा हुआ विषय है। इस पर किसी भी तरह की कोताही संयंत्र के साख, उत्पादन,संयंत्र के विकास, एवं सुरक्षा से जुड़ा हुआ विषय है। जिसे सर्वाधिक प्रमुखता की श्रेणी में रखकर इन विषयों का हल निकाला जाना चाहिए। श्रमिक यूनियनों द्वारा, बारंबार इस विषय को प्रमुखता से नगर प्रशासन के सम्मुख रखता रहा है। जिसमें कार्मिकों की भागीदारी भी प्रमुखता से रही है।
कम बजट के नाम पर मूलभूत सुविधाओं से वंचित करना गलत :
भिलाई के नगरवासियों एवं श्रमिक यूनियनों के प्रयासों के उपरांत भी कम बजट की बात रखकर मूलभूत सुविधाओं से वंचित करना कतई उचित नहीं है। भिलाई इस्पात संयंत्र जो की “सेल” की एक “ध्वजवाहक” इकाई है। इस इकाई के कार्मिकों को न्यूनतम मूलभूत सुविधाओं से वंचित रखना भिलाई इस्पात संयंत्र के कर्मियों को न केवल हतोत्साहित करता है, अपितु कर्मियों के मनोबल पर भी विपरीत प्रभाव डालता है।
वर्षा ऋतु से पूर्व आवासीय सीपेज की समस्या हल करना अनिवार्य :
वर्षा ऋतु से पूर्व, आवासीय सीपेज की समस्या को हल करने के लिए, प्रमुखता के स्तर पर कार्य करने के लिए, भिलाई इस्पात संयंत्र नगर प्रशासन एवं उच्च प्रबंधन को पत्र प्रेषित कर, विषयों पर चर्चा कर यथासंभव समस्याओं के निपटारे का प्रयास किया जाता रहा है, एवं आवश्यकता पड़ने पर भिलाई इस्पात संयंत्र के मेहनतकश श्रमिकों के मूलभूत सुविधाएं प्राप्त करने के लिए जन आंदोलन के स्वरूप में भी विषय को प्रस्तुत करने के लिए बाध्य होते रहा है, और बार भी यही स्थिति बन रही।
हुडको में सड़क है खराब, बनवाने की मांग :
भिलाई के सेक्टर 9, तालपुरी, सेक्टर 8, हॉस्पिटल सेक्टर, सहित दुर्ग शहर और टाउनशिप को जोड़ने वाली हुडको में सड़क बनवाने के लिए श्रमिक-मजदूर प्रतिनिधिमंडल महाप्रबंधक नगर सेवाएं विभाग से मिला। यहाँ देखा जा सकता है कि, महिला महाविद्यालय के पास की सड़क की जर्जर स्थिति मेें है, इसी जर्जर सड़क से सैकड़ों विद्यार्थियों का आना जाना लगा रहता है। इसी सड़क पर तीन स्कूल और कॉलेज मौजूद है जिनमे सैकड़ों विद्यार्थी पढ़ते हैं।
बरसात में सडक में भर जाता है पानी :
बरसात के मौसम में सड़क के गड्ढों में पानी भर जाता है और सड़क और गड्ढे में फर्क महसूस नहीं होता, ऐसी स्थिति में लगातार दुर्घटनाएं होती रहती है। इनसे बचाव के लिए जरूरी है कि, सड़क का संधारण किया जाए। बच्चों की सुरक्षा को देखते हुए इस कार्य को बेहद प्राथमिकता के साथ किया जाना चाहिए।
स्वास्थ्य सुविधा का अभाव, समस्या को लेकर सेक्टर 9 हॉस्पिटल के डायरेक्टर से चर्चा :
श्रमिक हॉस्पिटल विभागीय समिति के प्रतिनिधिमंडल ने सेक्टर 9 हॉस्पिटल के डायरेक्टर से अस्पताल कर्मियों के संदर्भ में चर्चा की। इस प्रतिनिधिमंडल में विभागीय समिति के प्रतिनिधि शामिल थे।
मेंटेनेंस कंप्लेंट करने की ऑनलाइन सुविधा प्रारंभ हो :
अस्पताल के अंदर सिविल, इलेक्ट्रिकल, कंप्यूटर, एवं AC के मेंटेनेंस कार्य के संदर्भ में प्रतिनिधिमंडल ने कहां की एक ऐसी व्यवस्था विकसित कीजिए जिससे कंप्यूटर के माध्यम से इन मेंटेनेंस कार्य को करवाने हेतु ऑनलाइन कंप्लेंट किया जा सके। मेंटेनेंस का कार्य जो सीधे अस्पताल के अधीन था उस पर अब नजर रखने की जिम्मेदारी सीधे नगर प्रशासन विभाग की होगी ऐसी व्यवस्था की जा रही है।
डॉक्टरों का हो व्यवहार कुशल :
जनरल ओपीडी में दवाई रिपीट करते समय कुछ डी एन बी डॉक्टर दवाई का स्ट्रेंथ नहीं लिख पाते है।अक्सर अस्पताल में कार्यरत डॉक्टर मरीजों के साथ अच्छा व्यवहार करते हैं किंतु कुछ हेल्थ सेंटर के डॉक्टरों द्वारा अभद्रता पूर्ण व्यवहार करने के संदर्भ में बातें लगातार यूनियन के पास आ रही है।
माइंस भेजने की पालिसी का रिव्यू किया जाए :
भिलाई के मेडिकल स्टाफ को सहायक माइंस क्षेत्र में भेजने के पॉलिसी पर चर्चा करते हुए प्रतिनिधियों ने कहा कि यह पॉलिसी उस समय बनी थी, जब सेक्टर 9 अस्पताल में पर्याप्त मात्रा में स्टाफ हुआ करता था। लगातार घटते स्टाफ के मद्देनजर इस पॉलिसी पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए एवं माइंस हेतु अलग से मेडिकल स्टाफ की भर्ती की जानी चाहिए।
[ये भी पढ़ें: भिलाई इस्पात संयंत्र के उच्च प्रबंधन का रवैया गैर जिम्मेदाराना]
यह भी मांग की गयी कि जिन भी कर्मचारी-अधिकारी को माइंस भेजा जा रहा है उन सभी को ट्रांसफर बेनिफिट दिया जाना चाहिए। क्योंकि जिनके नाम से भिलाई में आवास आवंटित रहता है, उन्हें यह बेनिफिट नहीं दिया जाता। इस पर सकारात्मक पहल करने एवं माइंस हेतु अलग भर्ती करने पर अपनी भी सहमति जताई गई है। और कहा गया है, बहुत जल्द माइंस भेजने के संदर्भ में बनी पॉलिसी का अध्ययन करेंगे एवं आवश्यकता अनुसार कार्य करेंगे। फार्मेसी में कर्मियों की कमी के संदर्भ में कहा गया है, कि अपोलो कॉलेज में अध्ययनरत फार्मेसी के स्टूडेंट्स लगातार सेक्टर 9 अस्पताल में ट्रेनिंग हेतु आते रहेंगे जिससे फार्मेसी में मदद मिलेगी।
मेडिकल स्टाफ हेतु लॉकर एवं चेंजिंग रूम की व्यवस्था :
मेडिकल स्टाफ हेतु हॉस्पिटल के अंदर में लॉकर्स की व्यवस्था नहीं है, जिससे उनके आवश्यक सामान लंच बॉक्स आदि रखने हेतु दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। साथ ही वर्ड्स को छोड़कर अन्य जगहों पर स्टाफ हेतु चेंजिंग रूम अथवा रेस्ट रूम की व्यवस्था नहीं है। इस पर लॉकर हेतु भेजे गए फाइल कि वर्तमान स्थिति की जांच करने एवं रेस्ट रूम के संदर्भ में आवश्यक पहल को प्रारंभ करने की आवश्यकता है।
आउटसोर्स कर्मियों को नहीं मिलता न्यूनतम वेतन :
संयंत्र के 52 अटेंडेंट सहित हॉस्पिटल के अंदर आउट सोर्स में करवाए जा रहे कार्यों से जुड़े ठेका कर्मियों को समय पर वेतन पूरा वेतन एवं हाजरी कार्ड देने की व्यवस्था की जानी चाहिए। यूनियन ने यह बात भी उठाई कि ठेका श्रमिकों को न्यूनतम वेतन तक नहीं दिया जाता एवं कुछ जगहों में तो वेतन दिया जाता है किंतु बैंक से पेमेंट निकालने के पश्चात कुछ रकम वापस ले ली जाती है। इस पर भी दोबारा से सभी आउटसोर्सिंग कर्मियों के जिम्मेदार इंचार्ज से बात करने की बात कही गयी है।
MTA का डी क्लस्टर बनाया जाए :
पिछली बार रीस्ट्रक्चरिंग करते समय MTA का एल.ओ.पी. में सी क्लस्टर प्रारंभ किया गया था। अब कर्मी डी क्लस्टर में जाने हेतु आवश्यक ग्रेड में पहुंच गए हैं। अतः उनकी ग्रोथ हेतु डी क्लस्टर बनाया जाना चाहिए, साथ ही रिकॉर्डर के पद हेतु मेडिकल स्टाफ से ही भर्ती किया जाना चाहिए। यूनियन ने यह मांग की कि मेडिकल स्टाफ के एल.ओ.पी.में ही रिकॉर्डर को भी जोड़ा जाना चाहिए।
रिटायर्ड सिस्टर एवं अन्य टेक्निकल स्टाफ की भर्ती किया जाए :
प्रतिनिधिमंडल ने कहा कि हॉस्पिटल को मजबूती से चलाने हेतु पर्याप्त नए स्टाफ की भर्ती किया जाना चाहिए साथ ही साथ अस्पताल से सेवानिवृत्त हो चुके नर्सिंग स्टाफ एवं टेक्निकल स्टाफ की भी उचित मानदेय पर भर्ती किया जाना चाहिए ताकि संयंत्र में कार्यरत कर्मियों को अस्पताल की बेहतर सुविधा उपलब्ध करवाया जा सके।
सेक्टर 9 के सभी वार्डों में डाइट चार्ट लगाएं :
पं. जवाहरलाल नेहरू चिकित्सा एवं अनुसंधान केंद्र, सेक्टर 9, में सभी वार्डों में डाइट चार्ट लगा दिया गया है। मुख्य कार्यपालक अधिकारी तथा अस्पताल प्रबंधन के साथ संयुक्त बैठक के दौरान श्रमिक संगठनों ने यह मांग रखी थी।
[ये भी पढ़ें: मानव आधिकार क्या है और अत्याचार के खिलाफ कैसे करे शिकायत]
ज्ञातव्य हो कि डाइट चार्ट के द्वारा यह पता चलता है कि, किस प्रकार के मरीज को किस प्रकार का भोजन दिया जाना चाहिए। डाइट चार्ट का निर्धारण रोग तथा रोगी की अवस्था को देखते हुए डाइटिशियन द्वारा किया जाता है। इस डाइट चार्ट की मदद से सामान्य मरीज भी अपनी मर्जी के अनुसार आवश्यक भोजन को निर्धारित कर सकेंगे। यदि किसी प्रकार की विशेष आवश्यकता हो तो वार्ड में संबंधित नर्स को अपनी आवश्यकता बता सकता है।
रोग के अनुसार भोजन जरुरी :
रोग के अनुसार भोजन न लेने पर कई बार रोग के बढ़ने की संभावना बढ़ जाती है। उदाहरण के लिए, जो मरीज मधुमेह के मरीज हैं, उनके लिए कम शर्करा युक्त भोजन अत्यंत जरूरी है, अन्यथा उनकी हालत और बिगड़ सकती है।
डाइट काउंसिलिंग के लिए डाईटीशियन उपलब्ध :
मरीज की अवस्था को देखते हुए, कई बार विशेष प्रकार के भोजन की व्यवस्था करने की आवश्यकता भी पड़ती है, जो डायटिशियन से काउंसलिंग के द्वारा तय की जाती है। ऐसी आवश्यकता, हजारों में से किसी एक मरीज को ही पड़ती है। इस प्रकार के विशेष डाइट के लिए सेक्टर-9 में डायटिशियन भी उपलब्ध है।
[ये भी पढ़ें: कमजोर विपक्ष के चलते खतरे में हो सकता है लोकतंत्र]
जो आवश्यकता पड़ने पर विशेष प्रकार के आहार की अनुशंसा करते हैं, और संबंधित मरीज को वैसा ही आहार दिया जाता है, ताकि उसके स्वास्थ्य में जल्द से जल्द लाभ हो सके। जवाहरलाल नेहरू चिकित्सा एवं अनुसंधान केंद्र, सेक्टर 9, में डाइट काउंसिलिंग के लिए आवश्यकता होने पर डॉक्टर की राय पर डाईटीशियन उपलब्ध की गई हैं।
प्रबंधन का रवैया :
जूनियर आफिसर बनाने का लालच देकर, कर्मचारियों से अधिकारीयों के काम लेने की कवायद। भिलाई इस्पात संयंत्र के बी बी एम विभाग में एक अलग तरह का मामला संज्ञान में आया है। यहाँ कार्यरत कुल 6 हिटर्स ( वर्कर्स) को प्रबंधन ने एक पत्र दिया है जिसमे उन्हें एग्जीक्यूटिव और प्लानिंग कार्यक्रमों में सम्मिल्लित होने कहा गया है। इसके बदले में उन्हें जूनियर आफिसर पद की परीक्षा के समय मदद और प्राथमिकता देने की बात मौखिक तौर पर कही जा रही है।
अधिकारी नहीं करना चाहते शिफ्ट में ड्यूटी :
मील के अधिकतर अधिकारी एजीएम और डीजीएम के ओहदे पर पदोन्नत हो चुके हैं जो सामान्य पाली में कार्य करना अपना अधिकार समझते हैं। शिफ्ट में काम करने के लिए जूनियर ऑफिसर्स की भारी कमी है। इसके लिए वर्कर्स के बीच से कुछ लोगों को निकालकर काम लेने की जुगत लगाई जा रही है। जबकि वर्कर्स खुद मैनपावर की कमी से परेशान हैं।
उठाया गया सवाल :
इस तरह के प्रलोभन पर सवाल उठाते हुए श्रमिक संगठन पर कहा है कि, अगर इस तरह से अधिकारीयों के कार्य करने से जूनियर ऑफिसर बनेंगे तो परीक्षा लेकर जूनियर ऑफिसर बनाने की प्रक्रिया क्या सिर्फ दिखावा है? इस कृत्य से स्थापित व्यवस्था और परीक्षा की पारदर्शिता पर बहुत बड़ा सवाल खड़ा हो जायेगा।
कर्मचारियों ने नहीं स्वीकारा आफर :
इस प्रलोभन से कर्मचारी नहीं डिगे क्योंकि वे वास्तविकता को जानते हैं। कर्मचारियों ने प्रबंधन से पूछा है की यदि एक ही जगह से 6 लोगों को ऑफिसर बना दोगे तो अन्य सेक्शन वालों का क्या होगा? इस तरह का प्रलोभन नये कामों की ओर धकेलने के लिए प्रबंधन का हथकंडा हो सकता है।
सहायक महाप्रबंधक ने पहले किया आग्रह अब डाल रहे दबाव :
प्रबंधन लगातार कर्मियों पर अनावश्यक दबाब बनाने की नीति अपना रहा है। ज्ञातव्य हो कि इसके लिए पहले सहायक महाप्रबंधक ने पत्र जारी कर मौखिक आग्रह किया था, अब कर्मचारी को अकेले में बुलाकर दबाव डाला जा रहा है। साथ ही अस्वीकार करने पर परिणाम भुगतने की बात भी कही जा रही है।
महाप्रबंधक करना चाहते हैं एक महीने आराम :
उच्च प्रबंधन की कर्मियों की समस्याओं को सुलझाने में कोई दिलचस्पी नहीं रह गयी है। इस सम्बन्ध में महाप्रबंधक श्रमिक नेताओं ने बात की तो उनका कहना है कि एक महीने बाद मै रिटायर हो जाऊंगा, नये आने वाले के पास ये मुद्दा उठाना मुझे एक महिना आराम करने दो। इसी ढर्रे के चलते पूरा संयंत्र अनिर्णय के चलते एक्सपांशन प्रोजेक्ट में पांच साल पीछे चल रहा है लेकिन अभी भी उच्च प्रबंधन पूरी तरह लापरवाह है।
पर्सनल विभाग बना मूक दर्शक :
भिलाई इस्पात संयंत्र में पर्सनल विभाग कर्मियों को सहयोग तथा उनके रिकार्ड रखने के लिए बनाया गया है , लेकिन यह विभाग अपने उच्चाधिकारियों के गलत फरमानों को लागू करने के षड्यंत्र तैयार करने का माध्यम बनकर रह गया है।
इस पूरे मामले में पर्सनल विभाग की चुप्पी संदेहास्पद है :
उल्लेखनीय है कि कार्य परिस्थिति एवं जिम्मेदारियों में बदलाव के लिए कानून है जिसमे यूनियन और कार्मिक दोनों की सहमति आवश्यक होती है किन्तु इस प्रक्रिया में किसी को भी विश्वाश में नहीं लिया गया है।
फिर भी…कर्मियों ने दिखाया अदम्य साहस, गणतंत्र दिवस पर रिकार्ड रेल उत्पादन :
मिल जोन के सचिव से मिली सूचना के अनुसार, गणतंत्र दिवस की पूर्व रात्रि पर रेल मिल ने R-60 रेल का रिकॉर्ड उत्पादन करके एक कीर्तिमान स्थापित किया है। 25 जनवरी की रात्रि पाली में 385 ब्लूम का सर्वश्रेष्ठ रिकॉर्ड उत्पादन दर्ज किया गया जिसमें 1465 टन ब्लूम का उत्पादन हुआ, यह अब तक का सर्वश्रेष्ठ उत्पादन है। इससे पहले 27 मार्च 2017 को 381 टन ब्लूम का रिकॉर्ड दर्ज हुआ था जिसके तहत 1450 टन ब्लूम का उत्पादन किया गया था।
फिर्निशिंग में भी बना रिकार्ड :
फिनिशिंग वह इकाई है, जहाँ से पास होने के बाद रेल को भारतीय रेल को सौंपा जाता है। गणतंत्र दिवस के अवसर पर प्रथम पाली में फिनिशिंग मिल ने भी कीर्तिमान स्थापित करते हुए 860 टन प्राइम रेल का उत्पादन किया। यह भी आज तक का सर्वश्रेष्ठ उत्पादन है। इस प्रकार से 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के अवसर पर 2700 टन प्राइम रेल का उत्पादन करके एक अभूतपूर्व कीर्तिमान स्थापित हुआ है।
साठ हजार का लक्ष्य पैंसठ हजार टन उत्पादन :
विश्वस्त सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार रेल मिल को 60,000 टन का लक्ष्य दिया गया है, लेकिन वर्तमान उत्पादन को देखते हुए रेल मिल 65,000 टन का उत्पादन करने की स्थिति में है, जो कि टारगेट से भी ज्यादा है, ऐसा पहली बार हो रहा है।
शोर्ट रेल पर बढ़ रहा काम का बोझ :
यू.आर.एम. के उत्पादन में कमी की वजह से शॉर्ट रेल पर अतिरिक्त बोझ पड़ रहा है। ज्ञातव्य हो कि यू.आर.एम. अपने स्थापित क्षमता का 25% ही उत्पादन कर पा रहा है। जिसके चलते शॉर्ट रेल पर दबाव बढ़ रहा है। भारतीय रेल को 90000 टन रेल की सप्लाई प्रतिमाह की जानी चाहिए। जिसकी सप्लाई के लिए शार्ट रेल के कर्मी निरंतर प्रयत्नशील रहते हैं, और इस टारगेट को पूरा करने में सक्षम रहे हैं।
जर्जर मशीनों और हड्डी तोड़ मेहनत का परिणाम :
यह बात भी सच है, कि शॉर्ट रेल मिल सबसे पुराना रेल मिल है, तथा वहां की अधिकांश मशीनें जर्जर हो चुकी है। पुराने किस्म के उपकरण लगे हुए हैं। कई कार्यो को मैन्युअल रूप से अर्थात हाथों से करना पड़ता है। वहां पर कार्य कर रहे अधिकांश कर्मी उम्र दराज भी हो चुके हैं। इस सबके बावजूद अपने दीर्घकालीन अनुभव तथा कार्य कुशलता के चलते हुए निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए जी तोड़ मेहनत करते हैं और लक्ष्य को प्राप्त करके ही छोड़ते हैं।
[ये भी पढ़ें: खेल और खिलाड़ी नहीं स्कूलों में, फिर भी…]
किसी भी रिकोर्ड को बनाने के लिए रिकार्ड बनाने वाली शिफ्ट के पहले वाली शिफ्ट के कर्मियों का योगदान सबसे महत्वपूर्ण होता है, जिसके बिना रिकार्ड नहीं बन सकता। उत्पादन एक टीम वर्क है जिसमे ठेका श्रमिक से लेकर संयंत्र कर्मी तक और शिफ्ट मेनेजर से लेकर उच्च प्रबंधन तक हर एक की भूमिका महत्वपूर्ण है जिसके बिना कुछ भी संभव नहीं है।
कर्मियों का उत्साह बढ़ाया :
रेल मिल के कर्मियों की अदम्य इच्छाशक्ति और प्रबल कार्यकुशलता को सराहने के लिए श्रमिक प्रतिनिधिमंडल 26 जनवरी गणतंत्र दिवस के अवसर पर उनके पास रात्रि पाली में पहुंचा तथा सभी कर्मियों को हार्दिक बधाई देते हुए उनका उत्साहवर्धन किया।
निश्चित रूप से प्रबंधन ने भी किया पूरा सहयोग :
कर्मियों के द्वारा किये गए रिकार्ड उत्पादन में महाप्रबंधक, शिफ्ट इंचार्ज, उप महाप्रबंधक उप महाप्रबंधक प्रभारी तथा शिफ्ट मैनेजर सकारात्मक भूमिका निभाई तथा कर्मियों को हर प्रकार से सहयोग किया। उन के मार्गदर्शन में कर्मियों ने इस लक्ष्य को अंजाम तक पहुंचाया।
[यर भी पढ़ें: दुर्ग-रायपुर बायपास के लिए प्रभावित, 51 गांवों में भूमि खरीदी-बिक्री बैन]
“इस छोटी सी रिपोर्ट से यही पता चलता है, कि मंदी से उभर रहा “सेल” इसीलिए श्रमिक संगठन ने जल्द ही वेज एग्रीमेंट की मांग की है। जिसकी मांग, श्रमिक संगठन वर्षों से करते रहा है कि, संयंत्र कर्मियों के लगातार कड़े परिश्रम के चलते “सेल” फिर से लाभ की स्थिती की ओर बढ़ रहा है तथा घाटा निरंतर कम हो रहा है।
अब समय आ गया है कि कर्मियों के द्वारा किए जा रहे कड़े परिश्रम को देखते हुए संयंत्र प्रबंधन की गई कटौतीयों को वापस ले तथा ई.एल. एन्केशमेंट, एच.आर.ए. तथा अन्य सुविधाओं को पुनः प्रारंभ करें। यहाँ कार्यरत अन्य कर्मियों, “हॉकर” लाईसेंस धारकों एवं भिलाई में कार्यरत, “पत्रकारों” को आवास सहित अन्य बुनियादी सुविधाओं की भी बात, भिलाई इस्पात संयंत्र प्रबंधन ने की थी। लेकिन, संयंत्र के “एम.डी.” का नाम बदलकर “सी.ई.ओ.” किये जाने के बाद सभी आदेश-निर्देश दिल्ली में बैठे “सेल – चेयरमैन” द्वारा ही लिए जाने की बात प्रबंधन करते रहा है।
“सेल” के बेहतर स्थिति को देखते हुए जल्द से जल्द वेज एग्रीमेंट भी किए जाने की मांग प्रमुख श्रमिक संगठन हिन्दुस्तान एम्पलाईज युनियन (सीटू) द्वारा की गई है।”
[स्रोत- घनश्याम जी. बैरागी]