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चलो किसी और जिंदगी में जी लेंगे इस जिंदगी की मनमर्ज़ियों को

जिंदगी कितनी अजीब है इसमें एक पल ऐसा भी आता है जब कदम कदम पर दूसरों का सहारा लेना पड़ता है। अब आप सोच रहे है कि बीमारी में भी तो अक्सर हम दूसरों या अपनों का सहारा लेते ही है ।इसमें कोई नई बात थोड़े ही है। हम बात बीमारी की नहीं कर रहे, हम बात कर रहे है लड़कियों की लाइफ के उस मोड़ की जब उन्हें जाने पहचाने घर को छोड़ कर किसी अनजान के घर जाकर अपनी पूरी जिंदगी किसी के सहारे के लिए इधर उधर देखना पड़ता है।
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अब आप ही सोचिए, एक लड़की अपने घर में कितनी आज़ाद होती है ,कुछ भी कर सकती है । कही भी आ जा सकती है, उसे किसी के सहारे की जरूरत नहीं होती । उसे बिना किसी की इजाजत लिए कही भी कुछ भी करने की आजादी होती है, लेकिन फिर भी अगर उसे अपने कामों के लिए किसी की मदद की जरूरत भी पड़ती भी है तो वह बिना किसी हिचक के अपने घरवालों की मदद मांगती है,पर यही लड़की किसी के घर जाए और जाते ही उसे वहां की लक्ष्मी, घर की मर्यादा आदि जैसे उपमानों से नवाज दिया जाये तो वो अचानक सहम जाती है। क्योंकि कभी अपने घर की राजकुमारी किसी दूसरे की कुल मर्यादा बन एक नहीं बल्कि पूरे परिवार की जीवन शैली को संभालती है।

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ऐसे में आप क्या कहेंगे, समाज की इन मानसिकताओं को जो एक लड़की की शादी के बाद उसकी सभी मासूमियतो को छीन लेती है। उसे हर छोटी बात के लिए सौ बार सोचना पड़ता है कि कहीं कुछ गलत हुआ तो कुल की मर्यादा का उल्लंघन न हो जायें । ऐसे में कुल की मर्यादाओं में फसकर अपने जीवन को किसी के आश्रित करने में ही वह अपनी भलाई समझती है।

यह मैं अपने विचारों से नहीं कह रही बल्कि मैं अपने आसपास के हालातों को देखकर कह रही हूं, कि किस तरह शादी के बाद कुल की मर्यादा के फेरे में अपने आप को भूल जाती यह नारीयाँ और अपना पूरा जीवन अपनी गृहस्थी बसाने में, अपने पति, सास ससुर आदि को खुश करने में बिता देती है।

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यह है एक लड़की की जिंदगी का सफर जो शादी से पहले भी कुल की मर्यादा में जीती है और शादी के बाद भी। अपने को भूलकर। अब इस धारणा को बदलना होगा उसे भी अपने जीवन को एक नए आयाम की अभिव्यक्ति देनी होगी ताकि वह अपने जीवन में यह न कहें कि “चलो किसी और जिंदगी में जी लेंगे इस जिंदगी की मनमर्ज़ियों को ।”

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