सुप्रीम कोर्ट ने रोहिंग्या मुसलमान मामले पर अपना नया फैसला सुनाते हुए सुनवाई की अगली तारीख 21 नवंबर कर दी है. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने मानवाधिकारों का हवाला देते हुए यह भी कहा है कि यह एक साधारण मामला नहीं है जो बिना सोचे-विचारे इस मामले पर फैसला सुना दिया जाए.
सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाने के साथ साथ केंद्र को यह आदेश भी दिया है कि जब तक इस मामले की अगली तारीख तक कोई भी रोहिंग्या मुसलमान शरणार्थी वापस नहीं भेजा जाना चाहिए अगर केंद्र किसी प्रकार की कोई अकस्मात योजना बना भी लेता है तो उसकी सूचना सर्वप्रथम सुप्रीम कोर्ट को देनी होगी.
#Rohingya case: Supreme Court said if you (Centre) take any kind of contingency plan, you need to inform this court
— ANI (@ANI) October 13, 2017
सुप्रीम कोर्ट ने अपने बयान को आगे बढ़ाते हुए कहा है कि हमें संतुलन नहीं तोड़ना चाहिए यह एक साधारण मामला नहीं है इस मुद्दे में कई लोगों के मानवाधिकार शामिल है. यहां सिर्फ राष्ट्र सुरक्षा को ही नहीं मानवाधिकारों को भी संज्ञान में रखना होगा क्योंकि यह एक अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा बन चुका है.
#Rohingya case: ASG Tushar Mehta, arguing for the Centre, told 3-judge bench of SC "this is an issue involving international ramifications"
— ANI (@ANI) October 13, 2017
भारत में अबतक 40,000 रोहिंग्या मुसलमान शरणार्थियों के रूप में रह रहे हैं, माना जा रहा है कि इनमें से 16,000 के पास वैध शरणार्थी दस्तावेज हैं मगर 21 सितंबर को केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह के बयान की मानें तो उन्होंने कहा है कि इन 16,000 रोहिंग्या मुसलमानों ने भी शरणार्थी के लिए जो प्रोसेस होता है उस वेरिफिकेशन को पूरा नहीं किया है.
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अपने बयान को आगे बढ़ाते हुए राजनाथ सिंह ने यह भी कहा था कि रोहिंग्या मुसलमान राष्ट्र सुरक्षा के लिए बहुत बड़ा खतरा है जिस कारण इनको देश में रहने का अधिकार नहीं दिया जा सकता है. 19 सितंबर को म्यांमार की स्टेट काउंसलर आंग सान सू ने अपना बयान जारी करते हुए कहा कि म्यांमार रोहिंग्या मुसलमानों के लिए रिफ्यूजी वेरिफिकेशन चला रहा है चीन को वापस आना है उनके लिए मेहमान बाहें फैलाए खड़ा है.