रोहिंग्या मुसलमान मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने सभी पार्टियों को बहस के लिए समय देते हुए फैसले की तारीख 21 नवंबर कर दी है 21 नवंबर तक सुप्रीम कोर्ट जाती है कि सभी राजनीतिक पार्टी आपस में बहस कर ले और एक मत बना ले.
19 सितंबर को म्यांमार की स्टेट काउंसलर आंग सान सू ने रोहिंग्या मुसलमानों पर अपना बयान जारी करते हुए कहा था कि 25 और 20 अगस्त को पुलिस चौकी पर जो हमले हुए उनमें आतंकवादी संगठनों के साथ-साथ रोहिंग्या मुसलमानों का भी हाथ था, साथ ही सान सू ने यह भी कहा था कि हमने रोहिंग्या मुसलमानों को अपने देश में संरक्षण दिया नतीजा क्या निकला उन्होंने हमारे पीठ में छुरा घोंपा मगर हम इन सभी बातों को भूलाने के लिए तैयार हैं और जो रोहिंग्या मुसलमान म्यांमार में वापस आना चाहते हैं हम उनके लिए रहे रिफ्यूजी वेरिफिकेशन की प्रक्रिया शुरू कर रहे हैं.
भारत के सामने इस स्थिति में एक सवाल खड़ा होता है जब म्यांमार रोहिंग्या मुसलमानों के लिए बाहें फैलाए खड़ा है तो फिर उनको भारत में रोकने पर क्यों जोर दिया जा रहा है. क्यों भारत की राजनीतिक पार्टियां रोहिंग्या मुसलमानों को चुनावी मुद्दा बना रही हैं. क्यों रोहिंग्या मुसलमानों पर तीखे तीखे भाषण दिए जा रहे हैं और क्यों उनको रोकने पर इतना जोर दिया जा रहा है.
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सवाल यह भी खड़ा होता है जो लोग एक बार अपने देश को धोखा दे सकते हैं अपने देश की पीठ में छुरा घोंप सकते हैं उनका क्या विश्वास है कि वह दोबारा ऐसा नहीं करेंगे और यह बात तो बिल्कुल साफ है जिनके सामने भूख एक बहुत बड़ी समस्या बनी हुई है उनका आतंकवादी संगठन से जुड़ना कोई बड़ी भारी बात नहीं.
भूखा पेट बहुत कुछ करवाता है अगर इस कहावत को यहां पर लागू किया जाए तो कोई गलत बात नहीं होगी जिनके पास ना काम है ना पैसा है न खाने के लिए कुछ. इस स्थिति में अगर आतंकवादी संगठन रोहिंग्या मुसलमानों की तरफ हाथ बढ़ाएं तो शायद ही रोहिंग्या मुसलमान उसे ठुकरा पाएं.
और यह बात राजनाथ सिंह ने पहले ही साफ कर दी है कि रोहिंग्या मुसलमानों के आतंकवादी संगठन से जुड़े होने के उनके पास पुख्ता सबूत हैं अगर रोहिंग्या मुसलमान राष्ट्र की रक्षा के लिए एक खतरा है तो ऐसे में पूरे देश को एकजुट हो राष्ट्रहित निर्णय का समर्थन करना चाहिए.