फिर भी

वो सुबह की नींद

प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री दुनियाँ को ज़िन्दगी से जुड़ी एक छोटी सी समस्या का विवरण दे रही है। वह कहती है ये तो घर-घर की कहानी है कि इंसान सुबह जल्दी उठ नहीं पाता, ज़्यादातर लोग अलार्म लगाते है लेकिन जब सुबह वो बजता है तो मन उठने को नहीं करता और हम एक मिनट करते-करते वक़्त को यूँ ही गवाँ देते है, शायद इसलिए क्योंकि सुबह की नींद बहुत ही प्यारी होती है। MORNING SLEEP & alarmआज कल लाइफ स्टाइल इतना चेंज हो गया है कि हम चाह कर भी चुस्त नहीं रहते लेकिन अगर खुद से लड़ा जाये तो धीरे-धीरे करके आदत को बदला भी जा सकता है। बस सुबह जल्दी उठना आप बर्डन न समझे। सुबह जल्दी उठने वालों का दिन बड़ा होता है, वह औरो के मुकाबले ज़्यादा काम कर पाते है। लेकिन ये मन बहुत ही चंचल है ये हमे एक मिनट करवाके सुबह जल्दी उठने नहीं देता। जैसा की मैं हमेशा कहती हूँ जीवन की लड़ाई स्वयं से है किसी दूसरे से नहीं। जब एक-एक बदलेगा तब जग बदलेगा।

अब आप इस कविता का आनंद ले।

वो सुबह की नींद,
जब अलार्म के बजते ही,उठना होता है।
झपकी दिलाकर और गहरी,
ये मन उसी वक़्त, न जाने और क्यों सोता है??

[ये भी पढ़ें : गहरी नींद लेने के आसान उपाय]

वह सुबह का एक मिनट, जो कभी पूरा नहीं होता है।
उस एक मिनट के भरोसे, ये मन न जाने कितनी देर और सोता है।
ये अंतर मन की लड़ाई, सुबह हर होज़ इस मन में कही छिड़ती है,
लेके मुझे अपने आगोश में, निद्रा रानी हर रोज़ मुझसे ऐसे ही भिड़ती है।

[ये भी पढ़ें : 5 ऐसे आहार जो आपकी नींद के लिए है बेहतर]

एक मन उठना चाहता है, ज़िम्मेदारियों का बोझ उसे सताता है।
तो दूजा अपने ही धुन में, नींद की वो सुरीली धुन बजाता है।
इस कश-म-कश में, कितना वक़्त गुज़र जाता है।
उठके फिर हर मानव, अपने काम पर निकल जाता है।
इस लड़ाई में जो अपने आलस का त्याग कर पाता है।
जीवन के अनोखे रंगो का और मज़ा बस वो ही ले पाता है।

 

Exit mobile version