श्रीगंगानगर में रोडवेज बस के एक परिचालक द्वारा स्वास्थ्य विभाग की एएनएम से दुव्र्यवहार करने और सुनसान जगह बीच रास्ते बस से उतार देने का मामला सामने आया है। महिला सुरक्षा में सबसे बड़ी चुनौती है क्योंकि अगर कोई अनहोनी की शिकार वह महिला नर्स होती तो इसका जिम्मेदार कौन होता? आखिर क्यों एक महिला की सुरक्षा की परवाह किए बगैर उसे अभद्रता करते हुए बीच सड़क बस में से धक्के दे कर उतार दिया गया? उस महिला का क्या कसूर होगा? और एक बेटी के साथ दुर्व्यवहार करने का अधिकार उस परिचालक को किसने दिया?
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फ़िर भी किसी बेटी को कंडक्टर द्वारा बस में से रास्ते में भी उतार देना कहाँ तक उचित है। लेकिन सरकार, अधिकारी, नेताओं के पास सुर्खियों में रहने के अलावा कुछ भी करते नहीं बनता क्योंकि अगर कोई कार्यवाही करने की बात हो तो किसी को भी यह हिम्मत नहीं हो सकती के किसी बेटी को बीच रास्ते सुनसान स्थान पर बस में से उतारकर चला जाये।
10 ईईए स्थित उप स्वास्थ्य केन्द्र में कार्यरत एएनएम अम्बिका कुमारी पिछले दिनों पदमपुर जाने के लिए राजस्थान रोडवेज की हनुमानगढ़ डिपो की बस (आरजे 1979) में 11 ईईए के बस स्टैंड से सवार हुई थी। बस परिचालक बंटी द्वारा निर्धारित से अधिक किराया राशि मांगने पर एएनएम ने आपत्ति जताई तो उसने बुरा-भला कहा। एक लडकी होण के बावजूद इसके साथ अभद्रता गईं कन्डेक्टर द्वारा। अधिक राशि की टिकट काट जबरन थमा दी। मना करने पर दुव्र्यवहार किया और आरोपी परिचालक ने धक्के देकर एएनएम को बीच रास्ते में गिरा दिया, जिससे चोट लगी।
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इस बात जानकारी मिलने पर राजस्थान नर्सेज एसोसिएशन के रविन्द्र शर्मा, श्याम गोस्वामी सहित अन्य ने सीएमएचओ को इससे अवगत करवाया। इसके साथ ही घमूड़वाली एसएचओ को इस मामले में कार्रवाई के लिए शिकायत दी गई है। गत दिवस नर्सेज एसोसिएशन पदाधिकारी कार्रवाई के लिए एसएचओ से मिले। इस पर एसएचओ ने जल्द कार्रवाई का आश्वासन दिया है। लेकिन अगर कोई कार्यवाही नहीं हुई तो आप यह भी मान सकते है कि बेटी बचाओ अभियान के तहत भी सिर्फ सुर्खियों में रहना चाहते सफेद पॉश। क्योंकि असल में महिलाओं की सुरक्षा व्यवस्था में चूक ऐसे ही मामलो में देखी जाती है शाम को सुनसान स्थान पर बीच सड़क अकेले लड़कियों को कितना सुरक्षित महसूस करते हैं। आप इसका अंदाजा निर्भया कांड के बारे में सोच कर लगाया जा सकता है।
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आखिर कब महिला की सुरक्षा व्यवस्था को लेकर सजग हो सकते है हम, और कब तक महिलाओं को ऐसे अभद्रता की शिकार होने पर मन मसोस करते हुए रहना होगा।आखिर सरकार की जिम्मेदारी है कि कम से कम सर्वाधिक तौर पर सार्वजनिक परिवहन, राज निगम की बसों और निजी क्षेत्र के परिवहन, यातायात व्यवस्था में बेटी को सुरक्षित रखने के लिए महिला सुरक्षा कानून का कठोरता से पालन हो, लड़कियों को हर सम्भव सुरक्षा उपलब्ध हो। तभी असल में बेटी बचाओ अभियान सफल होंगे।
अगर परिवहन विभाग की बसों में ही महिला को अपमानित महसूस करते हुए रहने, यात्रा न कर सके, और परिचालक द्वारा रास्ते में उतार देने की स्थिति को देखा जाये तो बहुत गम्भीर सवाल उठते हैं जिनके जवाब शायद ही कोई दे! लेकिन असल में अगर बेटी बचाओ अभियान और महिलाओं की सुरक्षा के लिए सरकार प्रतिबद्धता रखती है तो ऐसा कभी नहीं होता, यह सरकार की सरा सर संवेदन हीनता है।
[स्रोत- संतनाम मांगट]