फिर भी

कर्म ही प्रधान है

प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री समाज को बता रही है कि हर इंसान अपने तरीके से अपने ईश्वर की पूजा करता है। कोई व्रत करता है कोई ध्यान कर,तो कोई तीर्थ यात्रा कर या पूजा कर, सबके अपने -अपने तरीके है ईश्वर को समझने के, लेकिन सच्चा भक्त वही कहलाता है जो अपने ईश्वर को अपने दिल में जगह दे उनके दिखाये सही मार्ग पर आजीवन चलता रहे।
karm hi pooja haiकिसी का न बुरा करना और ना ही गलत सोचना ये भी साधना का ही एक हिस्सा है जिसे कुछ ही लोग समझते है। ईश्वर भी उन्ही का साथ देते है जिनके कर्म अच्छे होते है। गलत काम करके अपनी गलती मान लेना भी एक अच्छा कर्म है। रावण और देवदत्त जैसो को भी मरते वक़्त अपनी गलती का एहसास हो गया था। जिसने गलती करी वो अपनी गलती माने और जिसके संग गलत हुआ उसे गलत करने वाले को माफ़ कर देना चाहिये। दिल में किसी के लिए नफरत रख कर कोई इंसान खुश नहीं रहता। सच्चे और साफ़ दिल वाले लोग ईश्वर के दिल के सबसे करीब होते है।

अब आप इस कविता का आनंद ले।

हर कोई तुझे, अपनी समझ से पूजता है,
तुझे पाने का ख्याल तो, हर एक को सूझता है।
कोई ध्यान कर, कोई पूजा कर तो कोई व्रत कर,
तुझसे बस एक ही सवाल पूछता है।
हे ईश्वर क्या कर मैं तुझे मनाऊ,
अपनी सोई किस्मत मैं खुद कैसे जगाऊ?

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इस प्रशन का जवाब तुम कई तरीके से देते हो ।
सही मार्ग पर चलने वाले की हर कदम पर,
तुम, परीक्षा लेते हो ?
अपने मन की बात तुम दुनियाँ से खुल के,
क्यों नहीं कह देते हो ??
कर्म ही प्रधान है,
तुम्हारे दिखाये रास्ते पर चल,
बहुत लोगों ने बनाई अपनी पहचान है.
इस बात को जान कर भी,
ये दुनियाँ क्यों बनती अनजान है ??

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किसी भी उपाय का असर,
तुम तक तभी ही पहुँच पाता है।
अपने दिल में बसी तुम्हारी छवि को,
मानव जब समझ जाता है।
सोचता नहीं फिर वो किसी का भी बुरा।
निकले हर एक के लिए उसके दिल से फिर सच्ची दुआ।

धन्यवाद, कृप्या आप ये कविता बहुत लोगो तक पहुँचाये जिससे बहुत लोग सही ज्ञान तक पहुँचे। हमारी सोच ही सब कुछ है हम जैसा सोचते है वैसे ही बन जाते है।

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