फिर भी

ज़ुबान से निकला शब्द

प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री समाज को बहुत सोच समझ कर अपनी बात रखने की प्रेरणा दे रही है। वह कहती है कभी-कभी अगर जीवन में हम कुछ गलत कह देते है तो बात तभी खत्म कर देनी चाहिये क्योंकि एक ही बात अगर बहुत समय तक चलती रहे तो वह लड़ाई का रूप ले लेती है जिससे रिश्तों में दरार आ सकती है।

ये ज़ुबान ही होती है जिससे हम अपनों को पराया और परायों को अपना बना लेते है, लेकिन ये हर एक मनुष्य पर निर्भर करता है वह अपनी ज़ुबान का इस्तमाल किस दिशा में कर रहा है। माफ़ी मांगने से कोई छोटा नहीं होता। माफ़ी मांग कर भी अगर आपको कोई माफ़ न करें तो सोचना आपने अपना पश्चाताप कर लिया, क्योंकि घमंडी इंसान करुणा में कम विश्वास रखता है। हर इंसान अपने को ठीक रखने में दिमाग लगाये क्योंकि दुनियाँ ने तो पवित्र सीता माँ को भी नहीं छोड़ा था। जीवन की लड़ाई केवल स्वयं से करे। शब्दों के साथ -साथ भावनाओं पर भी जाओ।

अब आप इस कविता का आनंद ले।

ज़ुबान से निकला शब्द,
तीर बन कर कभी दिल पर लग जाता है।
अवाज़ नहीं करता मगर,
ज़ख़्म गहरा,ये दिल पर कर जाता है।
इसका घाव, वक़्त के साथ, कभी भरता है।
सही वक़्त पर रख दे जो अपनी बात,
इस घाव के रहते भी वो , घुट घुट कर नहीं मरता है ।

ज़ुबान से निकला शब्द,
हमेशा गलत दिशा की और संकेत नहीं देता,
अपनी गलत सोच की खातिर,
तू क्यों किसी मासूम की परीक्षा है लेता??
शब्द ही तो है,
हर एक शब्द के कई अर्थ होते है।
गलत बात को और गलत सोच कर,
हम ही अक्सर रोते है।

ज़ुबान से निकला शब्द,
पकड़ कर बैठना भी एक गलती है।
वक़्त पर न देकर किसीको माफ़ी,
ऐसे इंसान ही इस दुनियाँ में कम ही चलती है।
जिसमे अकड़ है वो तो अकड़ा ही रहेगा।
अपनी गलती का ज़िक्र वो कभी नहीं किसीसे करेगा।

धन्यवाद, कृप्या आप ये कविता बहुत लोगो तक पहुँचाये जिससे बहुत लोग सही ज्ञान तक पहुँचे। हमारी सोच ही सब कुछ है हम जैसा सोचते है वैसे ही बन जाते है।

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