प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री समाज को सबकी क्षमता का एहसास करा रही है. वह कहती है कि कोई इंसान बेचारा नहीं होता ईश्वर ने हम सब को एक सा बनाया है । हर इंसान चाहे तो बहुत कुछ कर सकता है। अपने को बेचारा समझ कर इंसान खुद की क्षमता को उभरने नहीं देता। अपने पर भरोसा न कर वह दूसरे से उम्मीद करने लगता है, जो कि सही व्यवहार नहीं है।
अब आप इस कविता का आनंद ले
इस दुनियाँ में कोई बेचारा नहीं होता।
हर बेचारे का कोई सहारा नहीं होता,
क्यों बेचारा बन बैठ, दूसरे से उम्मीद लगाते हो,
अपने दम पर, अपनी मेहनत से अपनी दुनियाँ क्यों नहीं सजाते हो ??
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इस दुनियाँ में कोई बेचारा नहीं होता।
अपने जीवन का सहारा, कोई खुद क्यों नहीं होता?
शायद इसलिए , क्योंकि दूसरे पर डालना असान है।
उनसे सीखो, जिसने खुद के दम पर बनाई अपनी पहचान है.
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इस दुनियाँ में कोई बेचारा नहीं होता।
हर महफ़िल की जान, कोई अमीर ज़्यादा नहीं होता।
किसी के गुणों को उसके पैसो से नहीं तोलना,
किसी के जीवन की गहराई को बिना जाने, उसके लिए कुछ भी नहीं बोलना।
धन्यवाद, कृप्या आप ये कविता बहुत लोगो तक पहुँचाये जिससे बहुत लोग सही ज्ञान तक पहुँचे। हमारी सोच ही सब कुछ है हम जैसा सोचते है वैसे ही बन जाते है।