फिर भी

अच्छा तो अच्छा ही रहेगा, युग चाहे जो भी हो।

प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री समाज को सोच में कितना बदलाव हुआ है उसका एहसास करा रही है। वह कहती है कि एक समय था जब कवियों को रवि से भी ऊपर रखा जाता है और आज सही दिशा में चलने वालों की मज़ाक बनाई जाती है । पहले लोग अपनी ज़ुबान के पक्के होते थे जो कहते थे वह समय पर करके दिखाते थे.

आज समय पर काम करने वालो का फायदा उठाया जाता है उनसे और काम लेकर। पहले ज्ञान को लोग जीवन में उतारना ज़रूरी समझते थे आज कहते है ज्ञान मत दो हमे सब पता है। लेकिन याद रहे समय चाहे कोई भी हो सत्यमेव जयते। सत्य की जीत हर युग में होती है। आज नहीं तो कल सच सामने आता है और जीत सत्य की ही होती है।

अब आप इस कविता का आनंद ले।

आज भी कही कही,
कवियों का सम्मलेन होता है,
उस दृश्य को देख,
इस कवियत्री का दिल भी ख़ुशी से रोता है।
वो बीते दिनों की कहाँनी,
जब कवियों को ऊपर रखा जाता था, रवि से,
दिल सबका झूम उठता था, कवियों की छवि से।

आज भी कही कही,
ज्ञान को लोग जीवन में उतारते है.
अपने ऐसे व्यव्हार के कारण,
वो अपना जीवन ज्ञान से सवारते है।
वो बीते दिनों की कहाँनी,
जब ज्ञान सुनने को भी लोग तरसते थे.
करे जो ज्ञान के विप्रीत बात,
ऐसे इंसानों पर बरसते थे।

आज भी कही कही,
लोग वक़्त की कीमत को समझते है।
वक़्त पर करके अपना काम,
अपनी जिम्मेदारियों को समझते है।
वो बीते दिनों की कहानी,
जब सारा काम वक़्त पर करके,
वक़्त और भी मिल जाता था ।
एक छोटी सी तकलीफ का पता भी,
अपनों को चल जाता था

आज भी कही कही,
लोग अपनी कही बात का मान रखते है।
जो कहा वो करके दिखाकर,
दूसरे की उम्मीदों पर खरे उतरते है।
वो बीते दिनों की कहाँनी,
जब जुबान कि ही कीमत होती थी।
मुकरे जो अपनी ही बात से,
उसकी किस्मत भी रोती थी।

धन्यवाद, कृप्या आप ये कविता बहुत लोगो तक पहुँचाये जिससे बहुत लोग सही ज्ञान तक पहुँचे। हमारी सोच ही सब कुछ है हम जैसा सोचते है वैसे ही बन जाते है।

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