फिर भी

परिवार का साथ

poetry on family

प्रस्तुत पक्तियों में कवियत्री समाज को परिवार का महत्व समझा रही हैं। वह समाज को इन पक्तियों द्वारा ये समझाना चाहतीं हैं कि परिवार से झगड़ा करके कोई इंसान सुखी नहीं रह सकता क्योंकि परिवार एक जन से नहीं बल्कि बहुत लोगों से बनता है, हर इंसान हर चीज में अच्छा नहीं होता, उसे कदम-कदम पर दूसरों की मदद लेनी पड़ती हैं।

उन्होंने परिवार की तुलना एक पेड़ से की हैं, सारे लोग एक ही जड़ के स्रोत से उत्पन हुए हैं, अगर कोई डाल पेड़ से अलग हो जाती हैं, तो वह बाज़ार में बिक जाती है अर्थात वह अपनों से जुदा होकर, इस दुनियाँ की भीड़ में कही खो जाती हैं और फिर ये दुनियाँ उसे अपने तरीके से इस्तमाल करती हैं। अपनों के साथ रहने का सुकून ही कुछ अलग हैं, जब तक हमारे बड़ो का आशीर्वाद हमारे साथ नहीं होता तब तक हम कुछ बड़ा नहीं कर सकते, डाली टूटने पर पेड़ भी अधूरा लगता हैं और डाली भी कही दुनियाँ में खो जाती हैं।

एक दूसरे का साथ हमें सही दिशा दिखाता हैं। ऐसा ज़रूरी नहीं बड़े ही हमेशा सही हो, बड़े छोटो को और छोटे बड़ो को भी सही राह दिखा सकते हैं। सबकी सोच में अंतर होगा मगर हर इंसान सही और गलत में फर्क कर सकता हैं बस ज़रूरी हैं ज़िन्दगी में हम कभी अपनों का साथ ना छोड़े।

अब आप इस कविता का आनंद ले

एक तार से जुड़ा,
होता हैं अपनों का साथ।
मिलता हैं उसे ही सब कुछ,
बढ़ चले आगे, जो थामे अपनों का हाथ।
अकेले रह कर खुशियाँ किससे बाँटोगे ??
गलत राह पर जाते देख,अपनों को कैसे डाँटोगे ??
पेड़ की नीव तो बस एक ही जड़ पे टिकी हैं।
टूट कर अलग हो जातीं जो डाल,
वहीं बस बाजार में बिकी हैं।
समझ कर इस दुनियाँ की सच्चाई,
इस कवियत्री ने ये कविता लिखी हैं।
जिस किसी को भी मेरी इस बात की गहराई,
अब तक नहीं दिखी हैं।
उसकी ही प्रतिष्ठा बाज़ार में कहीं फिकी हैं।

विशेष:- ये पोस्ट इंटर्न प्रेरणा महरोत्रा गुप्ता ने शेयर की है जिन्होंने Phirbhi.in पर “फिरभी लिख लो प्रतियोगिता” में हिस्सा लिया है, अगर आपके पास भी है कोई स्टोरी तो इस मेल आईडी पर भेजे: phirbhistory@gmail.com.

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