फिर भी

आपके पास ज्ञान होना ज़रूरी है डिग्री नहीं।

प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री दुनियाँ को यह समझाने की कोशिश कर रही है कि अगर इंसान ज्ञानी हो तो वो क्या कुछ नहीं कर सकता। किसी के अंडर काम करना है तो डिग्री शायद काम आये लेकिन खुदका कुछ स्टार्ट करने के लिए जुनून और हौसला चाहिये बस फिर चाहे हमारे पास डिग्री हो या न हो। दोस्तों ये बात हमेशा याद रखना पैसे खर्च करके हम ज्ञान तो पा लेते है लेकिन कुछ करने का जज़्बा, ईमानदारी, सच्चाई, हौसला ये सब इंसान के खुदके अंदर से होता है उसे पैसो से खरीदा नहीं जाता और इसकी डिग्री तो इंसान को उसको जीवन के अंत में मिलती है, जब वो खुदसे ये सवाल करता है मैंने अपना जीवन कैसे जिया। जीवन में अगर सफल बनना है तो हमेशा अपने जुनून की सुनना हर इंसान में कुछ न कुछ करने का जूनून तो होता है बस आपको वो जुनून पहचानना है कि वो ऐसा कौनसा काम है जो आपको सोने नहीं देता जहाँ आप अपनी थकान भूल कर भी उस काम को करना चाहते हो। याद रखना दोस्तों सफलता वही मिलती है जहाँ आपकी मेहनत से जग कल्याण हो फिर चाहे भले ही शुरू में लोग आपको न समझे क्योंकि सूर्य की तरह चमकना है तो उसकी तरह जलना भी पड़ेगा। तुम्हारी क्षमताओं को कोई और नहीं समझ सकता और न कोई तुम्हारा सपना देख सकता इसलिए खुदकी शरण में जाओ खुदपर विश्वास रखो अगर पता है तुम सही दिशा में बढ़ रहे हो।

अब आप इस कविता का आनंद ले।

आपके पास ज्ञान होना ज़रूरी है डिग्री नहीं।
दुनियाँ की परवाह न कर,खुदसे पूछो बस, क्या बात है सही।
फिर उस दिशा में, बस आगे बढ़ते जाना।
दुनियाँ का तो काम ही है, तुम्हारा हौसला तोड़, तुम्हे नीचा दिखाना।
जिस वक़्त किसी का साथ न मिले,उस वक़्त बस अपना हाथ थामना।
अपने मन में ही करना हर वक़्त, तुम बस ईश्वर से ये कामना।
मेरी क्षमताओं का सच बस तुम्हे ही पता है।
डिग्री मिली या न मिली? इसमें मेरी तो नहीं कोई खता है।
बस रखके अपनी क्षमताओं पर विश्वास, मैं बढ़ना चाहती हूँ आगे।
इस दरमियाँ बस टूट न जाये, मेरे नाज़ुक रिश्तो के धागे।
काश सबको आगे लेकर मैं बढ़ पाऊ।
अपने अच्छे कर्मो द्वारा, मैं दुनियाँ को ये समझा पाऊ।
जुनून का डिग्री से कोई सम्बंध नहीं।
डिग्री हासिल करने जब निकली ,तब हौसलों में मेरे, इतना दम नहीं।
तब कैसे सब कुछ छोड़, अपने जुनून को समझती,
अपनी इच्छाओं को पकड़, कैसे अपनों से उलझती।

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तब मेरी समझ में उतना ही आता था।
जितना ज्ञान का समुंदर मेरे अपनों के मुख से निकल जाता था।
जब उस समुन्दर में, मैंने खुदसे डुबकी लगाई,
तब जा कर मुझे भी फिर ये बात समझ में आई।
आँख खुलने के बाद ही सवेरा हो जाता है।
अपनी आप बीती फिर इंसान खुल के बताता है।
जो समझे, उसका हौसला बड़ जाता है।
न समझ तो, फिर भी, अज्ञानता के अंधकार में और डूब जाता है।

धन्यवाद।

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