प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री दुनियाँ को ज़िन्दगी की गहराई वक़्त पर समझने की प्रेरणा दे रही है। वह कहती है कि सुख में इंसान इतना बेफिक्र हो जाता है जैसे उसके जीवन में दु:ख अब नहीं आयेगा और दु:ख में इतना दुखी हो जाता है जैसे अब सुख कभी नहीं आयेगा। कवियत्री कहती है कि सृष्टि हमे जीवन से जुड़े गहरे ज्ञान का संकेत देती रहती है लेकिन हम कभी उसकी खामोशी में छुपे ज्ञान को समझ ही नहीं पाते जैसे हर रोज़ सूर्य उदय होता है दिन भर रौशनी फैला कर फिर ढल जाता है लेकिन इसका मतलब ये नहीं की वो ढला ही रहेगा क्योंकि फिर अगले दिन वो अपने समय पर निकल आता है. वैसे ही हमारे जीवन में खुशियाँ और दुख आते-जाते रहते है।
यही सृष्टि का नियम है. हर दिन कुछ न कुछ बदलता रहता है। कवियत्री कहती है ये बाते हर एक को आसानी से समझमे नहीं आती है। कभी -कभी दुख इंसान को जीवन के प्रति गहरा बहुत गहरा बना देते है।दोस्तों बहार निकलो और देखो ज़िन्दगी में दुख सिर्फ तुम्हें ही नहीं बहुत से लोग तो अपनी बात बिना रखे ही इस दुनियाँ से चले जाते है इसलिए जीवन की गहराइयो को अनसुना मत करो।
अब आप इस कविता का आनंद ले
ज़िन्दगी की गहराइयो का पता, धीरे-धीरे चलता है।
दिन की तेज़ चमक दिखा कर, हर शाम सूर्य भी ढलता है.
अनचाही मुश्किलों को पाकर, हर प्राणी फिर ज़िन्दगी से डरता है।
जिसने जितना बोया हैं, उसे यहाँ उतना ही मिलता है।
फिर क्यों सूर्य की चमक को देख, ये नहीं समझते,
ये ऊजाला दिन-भर तक ही तो साथ देता है।
बेफिक्र विचारों की धारा में,
इंसान खुदका ही तो बुरा कर देता है।
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जीवन की असलियत जान कर भी, उसे कोई गहराई से समझना चाहता नहीं।
अपने गमो के आगे किसी और के दुखो का, जैसे तुमसे जैसे कोई नाता नहीं।
ज़िन्दगी के हर एक दिन में ये सृष्टि, बिना कुछ कहे ही हमे बहुत कुछ सिखाती है।
हमारी मौजूदगी के चंद दिन की कहानी, ये धीरे से हमे सुनाती है।
अनसुनी करके उसकी बाते, कुछ पल हमे ख़ुशी मिल जाती है।
दु:खो की आँधी आने पर, फिर हर एक बात समझ में आती है।
धन्यवाद