प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री किसी भी चीज़ का न बखान करने की प्रेरणा दे रही है। वह कहती है कि इस दुनियाँ में कुछ भी चीज़ कभी स्थायी नहीं रहती है, वैसे ही न तो सुख और ना ही दुख स्थायी है। आज अगर दुख है या संघर्ष का समय है तो कल अराम का समय आयेगा ही आयेगा, बस याद रहे अपने दुख और संघर्षो में ईमानदारी का रास्ता भूल न जाना। अपने दुखो में कभी इतना डूब मत जाना कि मेहनत करना ही छोड़ दो।
अब आप इस कविता का आनंद ले।
शोर न मचाओ अपने दुखो का,
ये तो बस मेहमान है, कुछ ही पलों के।
रख अपने को कर इस कदर काबू करके,
कि तेरी आँख में कभी इन दु:खो के आँसू न झलके।
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शोर मत मचाओ अपने सपनों का,
बुरे वक़्त पर साथ नहीं मिलता कभी-कभी अपनों का,
अपने को कर, इस कदर काबू,
फिर बोलना तब, जब बन के दिखाओगे तुम कुछ बाबू।
शोर मत मचाओ अपने पैसों का,
नाश करा है इसने ही कैसे कैसो का.
अपने को कर, इस कदर काबू,
मेहनत के पैसों में भी होता है सबको हिलाकर रख देने का जादू