प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री ग्रहणी की महानता का वर्णन कर रही है। वह कहती है कि ग्रहणी आजीवन निस्वार्थ अपने परिवार की सेवा करती है लेकिन फिर भी बहुत ही कम लोग उसके इस त्याग और बलिदान को समझ पाते है. कितनी बार हमने देखा है कि लोग उनकी मेहनत न समझ, उनका दिल दुखा देते है ये कहकर की तुम कुछ नहीं करती। पैसों के लिए काम तो हर कोई करता है लेकिन निशुल्क किसी के लिए करना ये सबके बस की बात नहीं। ऐसा नहीं है कि उसके अपने कोई अरमान नहीं लेकिन अपने परिवार के लिए वो खुद को समर्पित कर देती है।
हमारे जीवन में माता-पिता की एक अनोखी ही भूमिका होती है, एक हमारे लिए आजीवन कमाता है अपनी सारी पूंजी हमारे ऊपर खर्च करता है तो दूजा आजीवन अपना सारा वक़्त अपने बच्चो के सृजन में लुटाता है। ऐसे ही नहीं किसी का बच्चा लायक बन पाता है। किसी की इज़्ज़त कभी ये देख मत करना कि वो कितना कमाता है। माँ की डॉट में भी प्यार है तुम गलत राह पर न जाओ इसलिए ही वह डाटती है। कभी-कभी हमें उनकी डाट बुरी लगती है लेकिन समय-समय पर हमे ये ज्ञात होता है कि गलत बात पर करा गुस्सा भी सही होता है जो न समझे इस बात को, वो जीवन में अक्सर रोता है।
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माँ आजीवन काम करती है उनका रिटायरमेंट कभी नहीं होता या शायद वो कभी लेना ही नहीं चाहती। मैं दुनियाँ की सारी माँ से एक निवेदन करना चाहूँगी कि हर नारी अपने सपनों को भी जिये, आप सब बहुत ही काबिल हो, अपनी शक्ति को भी पहचानों और अपने गुणों को समझो, गलत बात न करो और न सहो।
अब आप इस कविता का आनंद ले।
अपने काम के प्रति ऐसा जोश, मैंने किसी का नहीं देखा।
खुद की चिंता नहीं तेरे हाथो में बनी, ये प्यार की कैसी रेखा??
ममता भरी इन अँखियो में, ये प्यार की कैसी ज्योति है।
अपने दुखो को भूल तू क्यों दूसरे के दुख में भी रोती है।
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अच्छे कर्म के मार्ग पर चल, तुमने दूसरों को भी राह दिखाई।
गृहस्थ जीवन को अपना कर, तुमने सहली अपनी पीहर की भी जुदाई।
अपने को झुलसा कर, रोज़ निशुल्क काम करती हो.
इतनी महान होकर भी क्यों इस दुनियाँ से डरती हो??
अपने विचार क्यों मन में रख, तुम अक्सर चुप ही रहती हो,
अपने मन की व्यथा, तुम क्यों किसी से नहीं कहती हो?
बूढ़ी तो तुम भी होती हो,तो तुम्हारा रिटायरमेंट क्यों नहीं आता।
क्यों इस निस्वार्थ कर्म का मोल किसी को समझ नहीं आता।