फिर भी

अभिमानी और स्वाभिमानी

प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री अभिमानी और स्वाभिमानी का वर्णन कर रही है। वह कहती है कि हर इंसान पहले खुद की इज़्ज़त करना सीखे तभी वो दूसरे की इज़्ज़त कर पायेगा। अच्छे इंसान का बस इतना दोष होता है कि वह अच्छा होता है इस वजह से कभी-कभी अपना सम्मान खोकर दूसरे की मदद करता है।Company Bossकवियत्री कहती है दूसरे की मदद करे लेकिन साथ में अपना सम्मान भी बरक़रार रखना न भूले और अपने सम्मान को बरक़रार रखने में कभी अभिमानी न बने क्योंकि घमंडी का सर हमेशा नीचा होता है इसलिए याद रहे जीवन ऐसे जियो की अपना सम्मान भी बना रहे और किसी निर्दोष को बिना जाने हम उससे कुछ गलत न कहे। गलत के खिलाफ आवाज़ उठाना अच्छा होता है लेकिन गलत होते हुये भी अपनी गलती न मानना घमंड कहलाता है।

अब आप इस कविता का आनंद ले।

अच्छाई की राह में,
अपना स्वाभिमान तुम कभी न खोना।
देके अपने जीवन की डोर,
किसी और के हाथ में,
बाद में तुम फिर न रोना।

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अच्छाई का दुरूप्योग,
बहुत से लोग करते है।
अपनी अज्ञानता के कारण,
बुरे अक्सर अच्छों के हाथों मरते है।

अपने स्वाभिमान का ख्याल,
हर एक को खुद ही रखना होता है।
सच के रास्ते में दूसरों की सुन,
तू क्यों अपनी आँखे भिगोता है??

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स्वाभिमान को रखते आजीवन जो कायम,
अंत में चैन की नींद से बस वही सोते है।
ऐसे मनुष्य के जीवन में दुख भले ही होते है।
लेकिन उसकी अच्छी सोच के हौंसले,
उन दु:खो से भी ऊपर होते है।

स्वाभिमान को बचाने में,
कभी अभिमान न करना।
गलत राह की दिशा में,
तुम ईश्वर के दंड से डरना।

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अभिमान की राह में,
अच्छे-अच्छो का घमंड चूर होता है।
किसी के बे-बुनियाद इलज़ाम लगाने पर,
तू अपनी सुध-बुध क्यों खोता है ??

इतिहास गवाह है हर अभिमानी का,
सर हमेशा नीचा होता है।
इस असलियत का एहसास हमे,
सही दिशा पर चलने से ही होता है।
जिसका एहसास हर घमंडी को,
वक़्त पर नहीं होता है।

धन्यवाद

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