अन्नदाता कहे जाने वाले गरीब किसानों के साथ उत्तर प्रदेश की सरकार ना जाने कौन सा खेल खेल रही है उन गरीब किसानों के साथ कर्ज माफी के नाम पर बेहद गन्दा मजाक किया जा रहा है. उन्हें बार-बार बताया जा रहा है कि तुम केवल अपमान सहने के लिए हो. मथुरा में भी कर्ज माफी के नाम पर मात्र 1 पैसा माफ किया गया है और ऐसा केवल मथुरा में ही नहीं बल्कि इटावा और बाराबंकी में भी पहले से हो चुका है जहां किसानों को कुछ सपने दिखाकर उनके सपनों को अपने जूतों तले रौंद दिया जाता है.
जी हाँ, मथुरा में भी कर्ज माफी के नाम पर एक पैसा माफ होने की खबर सामने आ रही है. मथुरा के अडीग कस्बे में रहने वाले छिद्दी लाल को सरकार की तरफ से एक चिट्ठी मिली है जिसमें उसका कर्ज माफ होने की बात लिखी है मगर यह कर्ज डेढ़ लाख में से केवल एक पैसा है. छिद्दी लाल और अन्य गांव वाले यह समझ नहीं पा रहे हैं कि सरकार ने इतनी बड़ी मेहरबानी कैसे कर दी.
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दरअसल छिद्दी लाल के पिता डालचंद ने 2011 में डेढ़ लाख रुपए का कर्ज लिया था जो गरीबी के चलते वह चुकाने में असमर्थ हो गया. इस बार उत्तर प्रदेश में सरकार बनने से पहले BJP ने किसानों की कर्ज माफी को लेकर अहम मुद्दा रखा था जिसे योगी सरकार ने पूरा करने का आवाहन करते हुए किसानों का एक-एक लाख रुपया कर्ज माफ करने का वादा किया. मगर 36,000 करोड़ रुपये की कर्ज माफी में से लगता है कि छिद्दी लाल के हिस्से में मात्र एक पैसा ही लिखा था.
मगर इस एक पैसे को माफ करने की क्या वजह है? क्या इस एक पैसे को माफ कर उसकी गरीबी का उपहास उड़ाना है? क्या उसे बार-बार यह बताना है कि तुम अन्नदाता हो या ना हो मगर तुम उपहास के पात्र जरूर हो?
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ऐसा ही वाक्या कुछ दिनों पहले इटावा में देखा गया वहां पर सरकार ने स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के वंशजों को भी नहीं छोड़ा, उत्तर प्रदेश सरकार ने स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के परिवार वालों के मुंह पर भी 10 पैसे और 90 पैसे का जबरदस्त तमाचा मारा. यह एक पैसा, 10 पैसा या 90 पैसा माफ करने का क्या कारण है? क्या वजह है जो चंद पैसे माफ़ किए जा रहे हैं? वादा तो एक लाख रुपए का किया था.
क्या इसी तरह अन्नदाता का अपमान होता रहेगा? क्या इसी तरह गरीब किसानों का हर जगह उपहास उड़ता रहेगा?