सरकार का दावा है कि किसानो को सरकारी योजनाओं (जैसे- भावांतर , समर्थन मूल्य आदि) का लाभ दिया जायेगा. किसानो के लिए सरकार ये कदम उठाएगी और न जाने कितनी तरह की योजनाओ की घोषणा तो कर देते है लेकिन सवाल यह है कि क्या इन योजनाओ का लाभ सभी किसानों को मिल रहा है?
व्यापारी भी इसका फायदा उठाने में कोई कसर नहीं छोड़ते. जहा सरसों का मूल्य 4000 रुपये प्रति क्विंटल होना चाहिए था वहां वे उसे 3300, 3400 में ही खरीदते है और जहाँ गेंहू 2000 रूपए प्रति क्विंटल होना चाहिए था वहाँ वे उसका मूल्य सिर्फ 1400, 1500 ही लगाते है और किसानों को मजबूरन अपनी फसल घाटे में ही देनी पड़ती है. किसानो की स्तिथि ‘मरता क्या न करता’ जैसी कर रखी हैं.
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हर व्यक्ति यह सोच के अपना वोट डालता है कि शायद ये सरकार हमें सहारा देगी और हमें गरीबी से उभारेगी लेकिन आम जनता को हमेशा मायूसी ही मिलती आयी है. नतीजा क्या होता है जो लोग(किसान) ज्यादा कर्ज में डूब जाते है और वे आत्महत्या कर लेते है. कभी कभी पूरे परिवार सहित आत्मदाह.
अब तो भ्रस्टाचार इतना हो गया है कि किसानों को उभरना तो दूर उन्हें उनका हक भी नही मिल रहा है. भारत का एक स्वतंत्र नागरिक आज Phirbhi.in के माध्यम से ग्रामीण भारत की आवाज उठाते हुए सरकार से यही सवाल करना चाहता हैं कि कब तक किसान मरते रहेंगे ? क्या वे सारी जिंदगी गरीबी और लाचारी में ही जीते रहेंगे या फिर सरकार उनके लिए कोई और कदम उठायेगी ? और अगर सरकार कदम उठाएगी तो कब जब देश सभी गरीब किसान कर्ज में दब-दबकर अपना दम तोड़ देंगे.
सिर्फ योजनाओ की घोषणा कर देने से किसानो को उनका हक नहीं मिलेगा और न नहीं सरकार का काम यही तक खत्म हो जाता हैं बल्कि सरकार को किसानो का हक़ दिलाने के लिए योजनाओ की जाँच ईमानदारी से करनी होगी और सही नियत रख योजनाओ को किसानों को तक पहुचाना भी सरकार को ही पहुंचना होगा.
[स्रोत- राजकुमार मीणा]