पटाखों की अवैध फैक्ट्री के कारण बीकानेर के रिहाईशी इलाके में जो भीषण आग लगी उससे 7, 8 घर पूरी तरह से ध्वस्त हो गए और आस-पास के 4, 5 घरों को गिराकर दुबारा बनवाना पड़ेगा, और 14, 15 जनहानि हो चुकी है 12 से 15 लोग घायल हुए हैं और अब मुआवजे की बातें हो रही है नेताओं को बैठे बिठाये एक नया मुद्दा मिल गया चाहे वो किसी भी पार्टी से हो इस त्रास्दी को अपने मतलब के लिये भुनाना चाहता है ओर जिन लोगों के घरों में जानों माल की हानि हुई है उससे उन नेताओं को कोई सरोकार नहीं है लोगों ने भीड़ इकट्ठी करली है और रास्ते जाम करने की कोशिश हो रही है छुट भैये नेताओं ने भी अपनी कमर कस ली है कि इस बार बहुत ही अच्छा मौका है हाथ से जाने कैसे देंगे, सब नेता अपनी अपनी कोशिशों में लगे हुए हैं कि किसी भी तरह से इस बार अपनी छवि खराब नहीं होने देंगे । जिससे लोगों के मन में हमारे प्रति आदर भाव आए, तो अपनी पार्टी का नाम वापस अच्छा हो जाए ।
उधर जिस परिवार में जन हानि हुई है या जिनका मकान ध्वस्त हो चुका है या तोड़कर दुबारा बनवाना पड़ेगा वाली स्थिति में हैं, उन के रिश्तेदार, पहचान वाले अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहे हैं कि कैसे भी इनकी जिन्दगी आराम से चलने वाली स्थिति में आ जाए। किसी ने अपने घर में जगह दे रखी है कोई अस्पताल में उनकी जरूरत के सामान का पूरा ध्यान रखने की कोशिश कर रहा हैं और किसी किसी का पूरा परिवार ही अस्पताल में है उनके लिये आस पड़ौस के सारे लोग पूरी मुस्तेदी से उनकी सेवा मे लगे हैं ।
अब बात मुआवजे की:- इसमें सब से पहले जो फायदा उठाने वाला नेता है, वो जनता के साथ मिल कर सरकार पर दबाव डालता है कि मरने वाले को इतने रूपए दो, और घायलों को इतने रूपये दो, ये बातें बोलने वाले नेताओं के प्रति प्रभावित परिवार तहे दिल से शुक्रिया अदा करने लगता है, कि देखो ये नेताजी थे इन्होंने हमें इतना ज्यादा मुआवजा दिलवा दिया इसलिये अब इस पार्टी को ही अपना वोट देना चाहिये । लेकिन ये इतना मुआवजा दो वाली बात कहेगा कौन जो अप्पोजिशन में होगा चाहे पार्टी कोई भी हो जो भी अप्पोजिशन में होगा उसे ये बातें बोलनी ही होंगी नहीं तो उन्हें नेता कहेगा कौन, जो मौके का फायदा नहीं उठा सकता वो कहां का नेता । वो ये मुद्दा उठाएगा कि जिन लोगों के घर टूट चुके हैं या रहने लायक नहीं हैं उनके रहने के लिये सरकार ने अब तक क्या किया, उनके खाने पीने का इंतजाम कहां किया, जो घायल हैं उनके लिये क्या व्यवस्था है और आगे से उनकी जिन्दगी आराम से चल सके उसके लिये सरकार का क्या निर्णय है जनता को बताईये जनाब हमें जनता को जवाब देना पड़ता है ।
[ये भी पढ़ें : बिजनौर के नजीबाबाद का कदीर अहमद गिरफ्तार, मुंबई 1993 सीरियल ब्लास्ट से जुड़े है तार]
अब धरातल (यर्थाथ) की बात:- हमारा भारत बहुत बड़ा देश है उसमें कहीं भी-कभी भी किसी के भी साथ कोई भी हादसा हो रहा होगा या हो गया होगा या होने वाला होगा तो इसमें क्या उन नेताओं की गलती है जो कुर्सी पर बैठे हैं । आज एक पार्टी का नेता है, कल दूसरी पार्टी का नेता होगा, इसमें कुछ फर्क नहीं पड़ेगा, लेकिन क्या नेताओं की गलती के कारण ऐसा होता है बिलकुल नहीं नेता इसमें कुछ नहीं कर सकता । इसमें गलती जनता की है ।
जैसे अब बीकानेर के रिहायशी इलाके में पटाखों की अवैध फैक्ट्री पिछले 25 सालों से निरन्तर चल रही थी पहले सप्लाई का काम था फिर धीरे धीरे अपने घर में ही पटाखे बनाने लग गया जिससे उसे बहुत ज्यादा मुनाफा होने लगा तो उसने अपने घर में ही कुछ कमरों को फैक्ट्री का रूप दे दिया, और काम कुछ अधिक बढ़ गया तो 5, 7 मजदूरों को भी काम देने लग गया जिससे उसके काम में और तेजी आने लगी समय पर आॅर्डर पूरा करने लगा और बराबर सप्लाई होने लगी ।
अब बात एफ. आई. आर. की:- अब लोग बोलते हैं कि रिहायशी इलाके में इतने सालों से ये काम हो रहा था लोगों को थाने में जाकर शिकायत करनी चाहिये थी फैक्ट्री बंद हो जाती । इतना बड़ा हादशा तो नहीं होता इतनी जानों माल का नुक्सान तो नहीं होता, सब पड़ौसियों की गलती है इतने सालों तक किसी ने शिकायत क्यों नहीं की खुद की गलती है तो भुगतना ही पड़ेगा वगेरह वगेरह ।
एक व्यक्ति ने एफ आई आर लिखवाई थी और एक बार नहीं 4, 5 बार लेकिन जिस व्यक्ति की फैक्ट्री थी उस का भाई पहले एम. एल. ए. था इसलिये हर बार एफ आई आर पर आगे कोई कार्यवाही नहीं हुई और जो भी नया इंस्पेक्टर आता उसे अपने जेबें भरने में ज्यादा दिलचस्पी होती बजाय पब्लिक की सेवा के, क्यों कि जो भी पुलिस प्रसाशन में काम करने का (तनख्वा) पैसा मिलता है उसे तो वो एफ डी समझते हैं मतलब उसे तो हाथ भी नहीं लगाना चाहते उपर से जो पैसा मिलता है उसी से वो सारा घर का खर्च चलना चाहिये, ये विचार होता हैं हर सरकारी कर्मचारी का ।
अब बात ये है कि जो जानो माल का नुक्सान हुआ है वो सरकार क्यूं भुगते । गलती पुलिस वालों की या उससे जो उपर बैठै हैं उनकी और मुआवजा सरकार से ?
क्यों भाई क्या सरकारी कर्मचारीयों को सरकार हर महिने तनख्वाह नहीं देती है ?
[ये भी पढ़ें : पुलिस व्यवस्था में सुधार की गुंजाइश]
जो आप उपर की कमाई करने के फिराक में रहते हो, इसीलिये देश की इतनी दयनीय स्थिति हो गई है कि जो भी आएगा अपना घर भरेगा, सरकार के टेक्स की चोरी करेगा, आॅफिसर है तो चालान नहीं काटने के पैसे लेगा, जो सरकार के खजाने में नहीं उसकी जेब में जाएगा, जबकि हर महिने काम करने की तनख्वाह उसे सरकार से मिलती है, अब जब सरकार के खाते में पैसे जमा कराने की जगह उसने अपनी जेब में पैसा भरा है तो मुआवजा सरकार क्यों दे ?
वो ड्यूटी करने वाला आॅफिसर या कर्मचारी को देना होगा, चाहे कितने भी कर्मचारी या आॅफिसरों की बदली हुई हो जिस आॅफिसर या कर्मचारी ने रिश्वत लेना शूरू किया था, चाहे अब तक वो रिटार्यमेंट हो गया हो, और हादशा होने तक जिस कर्मचारी ने रिश्वत ली है उन सब से वसूला जाए । चाहे उसके लिये सरकार को उनकी प्रोपर्टी की निलामी ही क्यूं ना करनी पड़े, जो भी मुआवजा जितने भी व्यक्तियों को देना हो सारा उनसे वसूला जाए और अगर वो लोग इस स्थिति मेें नहीं हों तो उनको सश्रम कारावास में रखो, और ये बहुत जरूरी है । आज से पहले ये नहीं हुआ होगा । और अगर ऐसा कर दिया जो उसके बाद भी कभी नहीं होगा ।
[ये भी पढ़ें : आरक्षण और भारत की दुर्दशा]
हां जो त्रास्दि आती है जैसे :- भूकम्ंप, बाढ़, या कोई प्राकृतिक आपदा उसके लिये सरकार अपना खजाना खुला रखे उसमें मुझे कोई शिकायत नहीं है, लेकिन गलती इंसानों की हो और अपना पाॅकेट भरने वाले लोगों की वजह से कोई घटना हुई होती है, तो उसके मुआवजे की भरपाई उन लोगों से करनी होगी, जिन की गलती से ये हादसा हुआ होगा ।
अगर आप मेरे इन विचारो से सहमत है तो नीचे कमेंट बॉक्स में अपनी प्रतिक्रिया जरूर दें.
।। जय हिन्द ।।