फिर भी

जो मिला खूब मिला

प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री दुनियाँ को यह समझाने की कोशिश कर रही है कि जीवन में दुखो का होना कितना ज़रूरी है क्योंकि जो चीज़ बहुत मेहनत कर या बहुत कष्ट सह कर मिलती है उसका आनंद ही अलग होता है। कवियत्री सोचती है वो इंसान बहुत ही खुश नसीब है जिसे इस दुनियाँ में कुछ भी पका पकाया नहीं मिला क्योंकि खुद अपने दम पर किसी चीज़ की रचना करने का आनंद ही कुछ अलग है।

याद रखना दोस्तों तुम्हारा हर दुख तुम्हारे सुख के दिनों की सूचना लेकर आता है इसलिए कभी अपने दुखो को लेकर बैठ परेशान मत होना दुखो के रहते हार मान कर कभी मत रोना क्योंकि ख़ुशी का अपार एहसास तभी तो होगा जब उतना दुख देखा हो और केवल तुम ही नहीं हर सफल व्यक्ति इस दौर से गुज़रता है।

अब आप इस कविता का आनंद ले।

अच्छा हुआ जो जीवन में मुझे,
दौलत खैरात में नहीं मिली।
मिलती तो मेहनत करना कैसे सीख पाती।
आराम की आड़ में, मै तो दल-दल में ही गिरती जाती।

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अच्छा हुआ जो जीवन में मुझे,
आराम की लत नहीं लगी.
लगती तो जीवन की कठनाईयो से लड़ नहीं पाती।
अपनी हर समस्या का हल पाने की उम्मीद मैं दूसरों से लगाती।

अच्छा हुआ जो जीवन में मुझे,
सादगी पसंद आई।
मेरी पसंद को देख, मेरी ज़िन्दगी भी मुस्कुराई,
शायद इसलिए ही ये कवियत्री आज इतना कुछ लिख पाई।

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अच्छा हुआ, जो जीवन में मुझे,
छोटी-छोटी बातो पर टोका गया,
गलत दिशा में जाने से हर बार मुझे रोका गया।
न रोकते तो आज मैं यू न लिखती।
कवियों के सम्मलेन में,मैं कभी किसी को न दिखती।

अच्छा हुआ जो जीवन में मुझे,
हर चीज़ बहुत मेहनत कर ही मिली।
मेरे जीवन के इस पेड़ में, हर कली ही मेहनत से खिली।
यूही खिलजाती तो अच्छी खाद की कीमत मै समझ नहीं पाती।
अपनी सफलता की दास्ताँ से, मैं लोगो के मन में उम्मीद का दिया कैसे जलाती??

धन्यवाद।

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