बसपा प्रमुख मायावती का राज्यसभा पद से इस्तीफा देना अपनी जाति पर लगातार हो रही हिंसा पर चिंता है या फिर मात्र एक सियासी खेल. आज राजनीति ने बड़े पैमाने पर देश को अलग-अलग धड़ो में बाँट दिया है और यह खेल अभी भी जारी है.
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मायावती ने आरोप लगाया कि उन्हे राज्यसभा मे सहारनपुर मे दलितो पर हुई हिंसा मामले मे बोलने का मौका नही दिया गया. इस कारण वे इस्तीफा दे रही है. लेकिन मायावती को भी ध्यान मे रखा चाहिए कि संसद मे समय पाबंदी के हिसाब से ही बोलने का वक्त दिया जाता है और वे राज्यसभा के उपसभापति तय करते है, किसी दल के नेता नही. इस पर विपक्ष ने भी जमकर सत्ता पक्ष पर निशाना साधा और मायावती के संसद छोड़ने के साथ ही कांग्रेस और वामपंथी दल भी सदन छोड़ कर चले गए.
ऐसा पहले भी हो चुका है कई पार्टियो के नेताओं ने कारण बताकर राज्यसभा सदस्य से इस्तीफे की पेशकश की है. जबकि नियम कहता है कि इस्तीफे के साथ न कोई कारण बताया जाता है और न ही कोई सफाई दी जाती है. ऐसी परिस्थति मे ही किसी भी सांसद के इस्तीफे को मंजूर नही किया जा सकता.
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यदि बार-बार सत्र मे हंगामा होता रहेगा तो ऐसे न तो किसानो की आत्महत्या के मुद्दे, गौरक्षको की गुंडागर्दी का मुद्दा और दलितो पर हिंसा का मुद्दा और न ही कोई कामकाज को अंजाम दिया जा सकता है. इससे अच्छा है कि सांसद हर रोज संसद मे सीढिंयो पर चढ़कर रोज हंगामा करें और हमे लगे कि सांसद हमारे अधिकारो के लिए लड़ रहे है.
हमे ध्यान रखना होगा कि संसद का मानसून सत्र चल रहा है और सत्र किसी खास मौके के लिए बुलाया जाता है. सरकार सत्र मे विधेयक पेश करती है और विपक्षी पार्टियो से अनुग्रह किया जाता है कि वे विधेयक को पारित करवाने के लिए इस पर चर्चा करे. इसका यह मतलब नही है कि सरकार देश मे हो रही हिंसाओं की अनदेखी करे.