प्राचीन काल से ही भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति संतोषजनक नहीं रही है। पुरुष सत्तात्मक समाज हमेशा से महिलाओं को केवल भोग विलास की वस्तु समझता आया है और महिलाओं को घर में चारदीवारी तक रखना ही अपना बड़प्पन समझा जाता है। हालांकि लोगों में जागरुकता फैलाने की कोशिश लगातार होती रही है सोशल मीडिया के माध्यम से एक नई सोच लोगों तक पहुंचाई जा रही है परंतु इसमें 100% सफलता अभी तक नहीं मिल पाई है लोग पढ़ लिख कर भी अपनी पारंपरिक सोच को नहीं बदल पा रहे हैं आज भी लड़के और लड़की में अंतर किया जाता है पढ़ाई से लेकर विवाह के बाद तक एक लड़की उपेक्षाओं और दूसरों के प्रभुत्व का शिकार बनी रहती है। उन्हें केवल बर्दाश्त करना सिखाया जाता है ना कि अपने अधिकारों के लिए लड़ना। भारत में 70% प्रतिशत महिलाएं अपने अधिकारों के प्रति जागरुक ही नहीं है उन्हें पता ही नहीं है कि आखिर उन्हें संविधान में कौन से अधिकार प्राप्त है।।।।
महिलाओं का अपने अधिकारों के प्रति जागरुक न होने का सबसे बड़ा कारण “अशिक्षा” है।।।। आज भी अगर महिला और पुरुष शिक्षा के आंकड़े देखे जाएं तो उनमें बहुत अंतर है। 2011 की जनगणना के अनुसार पुरुष शिक्षा दर 82.14% थी तो वहीं महिलाओं की शिक्षा दर मात्र 65.46% थी। अशिक्षा के साथ-साथ जो महिलाएं शिक्षित भी है वह अपने अधिकारों के प्रति तब तक जागरुक नहीं होती जब तक कि उनके साथ कोई घटना घटित नहीं हो जाती।।।। कहीं ना कहीं इन सब बातों के लिए महिलाएं स्वयं जिम्मेदार है। क्योंकि वह खुद यह समझती हैं कि अधिकार केवल पुरुषों के लिए बने हैं महिलाओं के लिए बना है तो सिर्फ “कर्तव्य”!!!! अपने साथ हो रहे अन्याय के लिए महिलाओं को खुद आगे आना होगा पिछले दिनों तीन तलाक देश का एक प्रचलित मुद्दा रहा तीन तलाक मुस्लिम महिलाओं के लिए किसी अभिशाप से कम नहीं और इसके खिलाफ मुस्लिम महिलाएं जो तीन तलाक से प्रभावित थी वह आगे आयीं और इस कुरूति का जमकर विरोध किया लेकिन उससे भी अधिक संख्या में महिलाओं को इस लडाई में आगे आना चाहिए था केवल मुस्लिम समाज की महिलाएं ही नहीं हर धर्म की महिलाओं को अपने साथ हो रहे अत्याचार का विरोध करने के लिए आगे आना चाहिए और एक दूसरे का साथ देना चाहिए।।।।
महिलाएं कोर्ट कचहरी और अपने परिवार की बदनामी के डर से अपने अधिकारों के लिए आवाज नहीं उठाती हर बार समझौता करने की आदत महिलाओं को कमजोर और पुरुष सत्तात्मक समाज को अधिक ताकतवर कर रही है।।।।
महिलाओं को सबसे पहले अपने अधिकारों के बारे में जागरूक होना होगा विवाह से लेकर ससुराल, पुलिस संबंधी, तलाक संबंधी, घरेलू हिंसा संबंधी अनेक अधिकार है जिनका उपयोग करके महिलाएं अपने साथ हो रही हिंसा के प्रति आवाज उठा सकती है।
संविधान का अनुच्छेद 14 सभी को समानता का अधिकार प्रदान करता है चाहे वह स्त्री हो या पुरुष।।।। अनुच्छेद 15 किसी भी व्यक्ति, जाति, लिंग धर्म और जन्म स्थान के आधार पर मतभेद करने का अधिकार नहीं देता इन सबके अलावा महिलाओं के प्रति होने वाली घरेलू हिंसा या किसी भी तरह के शोषण को रोकने के लिए 2005 में घरेलू हिंसा अधिनियम पारित किया गया जिससे महिलाओं को न्याय मिल सके और सम्मान के साथ जीने का अधिकार मिल सके आंकड़े बताते हैं कि आज भी भारत में 70% महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार है ।घरेलू हिंसा का मतलब महिला के साथ किसी भी तरह की मानसिक तथा शारीरिक प्रताड़ना से है घरेलू हिंसा से पीड़ित महिला को पुलिस में उस व्यक्ति के खिलाफ शिकायत दर्ज करानी चाहिए।।।।
महिलाओं के खिलाफ छेड़छाड़, यौन शोषण, यौन उत्पीड़न जैसी घटनाओं से निपटने के लिए भी आईपीसी की धारा 294 के तहत शिकायत करने पर दोषी को 3 महीने तक की सजा का प्रावधान है महिलाएं जहां काम करती हैं उस स्थान पर उनका शोषण ना हो उसके लिए 2012 में “सेक्सुअल हरासमेंट ऑफ वूमेन एट वर्कप्लेस एक्ट” पारित किया गया।।।।
पुलिस से सुरक्षा के लिए भी महिलाओं को कुछ अधिकार दिए गए हैं जैसे किसी महिला को पूछताछ के लिए पुलिस स्टेशन नहीं भुलाया जा सकता बल्कि उस महिला के घर जाकर पुलिस को पूछताछ करनी होगी पुलिस किसी भी महिला को बेवक्त परेशान नहीं कर सकती सूर्यास्त के बाद घर आई पुलिस को महिला वापस भेज सकती है।।।
भारत में कन्या भ्रूण हत्या के आकडे़ भी बहुत ही डरावने है इन आंकड़ों के अनुसार भारत में हर 2 घंटे में असुरक्षित गर्भपात के कारण एक महिला की मौत हो जाती है। असुरक्षित गर्भपात और महिलाओं की सुरक्षा के लिए 1971 में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट पारित किया गया इस एक्ट के तहत प्रेगनेंसी और अबार्शन जेसे मामलों में निर्णय लेने का महिला का पूर्ण अधिकार होगा क्योंकि यह उसकी शरीर से जुड़ा फैसला है कोई भी उस महिला की इच्छा के बिना अबार्शन नहीं करा सकता।।।।
महिलाओं को अपने पिता की प्रॉपर्टी में भी समान अधिकार प्राप्त है फिर भी महिलाएं अपना हक नहीं लेती अपने अधिकारों को जानना नहीं चाहती उनके लिए महिलाओं को शिक्षित होने की आवश्यकता है और महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरुक करने के लिए स्कूल के पाठ्यक्रम में (18 वर्ष के ऊपर) महिलाओं के अधिकारों का एक अध्याय रखने की आवश्यकता है। गर्ल्स कॉलेज में खास वर्क शॉप या प्रोग्राम भी महिलाओं के अधिकारों के लिए आयोजित किए जाने चाहिए।
अंत में मेरी सभी महिलाओं से यही अपील है कि अपने कर्तव्यों के साथ साथ अपने हक के लिए लड़े अपने सभी अधिकारों का सही इस्तेमाल करते हुए खुद को आत्म सुरक्षा प्रदान करें और आत्मसम्मान की जिंदगी जीयें।।।।
विशेष:- ये पोस्ट इंटर्न प्रीति चौधरी ने शेयर की है जिन्होंने Phirbhi.in पर “फिरभी लिख लो प्रतियोगिता” में हिस्सा लिया है, अगर आपके पास भी है कोई स्टोरी तो इस मेल आईडी पर भेजे: phirbhistory@gmail.com