श्रीविजयनगर रेलवे स्टेशन पर कचरे के ढेर दे रहे स्वच्छता अभियान की गवाही

स्वच्छ भारत अभियान देश की जनता के साथ छलावा साबित कर आपने फ़ोटो खिंचवा रहे देश के शीर्ष नेतृत्व की पोल खुल रही हैं हर गली मौहल्ले, बस स्टेंड, रेलवे स्टेशन. हर जगह देखने पर ऐसे प्रतीत नहीं हो रहा कि असल में जमीनी स्तर पर स्वच्छ भारत अभियान में कुछ काम हुये हैं और अधिकारी कर्मचारीगण स्वच्छता अभियान में रुचि रखते हैं अगर ऐसे हो तो किसी भी रेलवे या बस स्टेशन पर या स्वास्थ्य केंद्र या गली चौराहे पर गंदगी के ढेर नजर नहीं आयेंगे लेकिन अधिकतर नेताओं और अधिकारियों द्वारा स्वच्छता अभियान एक काग़जी घोड़ा बना दिया गया है.Shree vijay nagar railway station.जिसका ताजा उदाहरण हैं श्रीविजयनगर रेलवे स्टेशन के इर्द गिर्द सफ़ाई व्यवस्था, श्रीविजयनगर नगरपालिका क्षेत्र में भी आसपास के गली मोहल्ले मुख्य चौराहे स्वच्छता मिशन की खिल्ली उड़ाते नजर आते हैं।रेलवे स्टेशन परिसर में एक तरफ जहां हर तरफ गन्दगी देखने को मिलती हैं वहीं रेलवे स्टेशन परिसर की दीवारों पर प्रचार माद्यम भी काफी हावी है और बेरोकटोक रेलवे स्टेशन परिसर के सौंदर्य के साथ खिलवाड़ करते हुए इन पम्पलेट और बेंनर पर स्टेशन अधीक्षक की तरफ से कोई नियंत्रण नहीं है.

ऐसा लगता हैं जैसे कोई खुल्ला अमनतत्रन दे रहे हो कि रेलवे स्टेशन पर किसी भी गैर कानूनी गतिविधियों के संचालन करता भी अपना विज्ञापन चिपका जाए और अवाम उस पम्पलेट को पढ़कर चाहे किसी भी ठीक ठाक ठगी का शिकार हो जाये। लेकिन अगर स्टेशन अधीक्षक के तरफ से इन सभी को रोका जाए तो स्टेशन पर गंदगी और और अव्यवस्था फैलाने वालों को रोका जा सकता है और ऐसे लोगों के खिलाफ कार्यवाही करने की जरूरत है.

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लेकिन जब नगरपालिका के तरफ से सफाई पर ध्यान नहीं है तो गन्दगी फैलाने वाले भी बेख़ौफ़ होकर अपना फ्री का प्रचार माध्यमों का सहारा लेना नहीं भूलते और अनेक सार्वजनिक क्षेत्र में अपने पेम्पलेट चिपका शहर के सौंदर्य के साथ खिलवाड़ करने का मजा लेते हैं। असल में देखा जाए तो स्वच्छता का नारा भी सिर्फ़ काल्पनिक हैं क्योंकि कोई भी स्वच्छता के लिए स्वयं की जिम्मेदारी तय नहीं करता और स्वच्छता अभियान में अपनी नैतिक जिम्मेदारी निभाने का धैर्य नहीं रखता। Pumplate in Shrivijay nagar railway stationआगे चलकर स्वच्छता अभियान के नाम पर बोट बटोर लिए जाएंगे किसी को कुछ फर्क नहीं पड़ेगा अगर किसी को भी फर्क पड़ता है तो अवाम नागरिकों को देश के भविष्य कहे जाने वाले आगामी शिक्षित युवाओं को क्योंकि आने वाली सरकार हमेशा यही तर्क देगी की हमारे पास धन नहीं है रोजगार देने के, हमारे पास नहीं है सब्सिडी देने के लिए। स्वच्छता अभियान पर करोड़ो ख़र्च हुये हैं लेकिन यही बदबू मारती गलियों और गन्दगी युक्त वातावरण में सांस लेने वाली नस्लों के स्वास्थ्य को भी गम्भीर नुकसान होगा.

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मगर इस सब से किसी अधिकारी और नेताओं को कोई फरक नहीं पड़ता क्योंकि अगर जरा भी नैतिकता हो तो कोई भी अपने अधीनस्थ अधिकारी को लापरवाही बरतने के लिए खुला नहीं छोड़ सकता और स्वच्छता अभियान में कोरे आंकड़े जारी हो रहे हैं ज़मीनी लेवल पर कोई संतोषजनक कार्य नहीं हो रहे हैं स्वच्छता के नाम पर बजट का बंटाधार और देश के कोष नुकसान पहुंचा दिया गया है लेकिन इस सब पर कोई किसी भी तरह से जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं है कि वास्तव में देश की जनता की गाड़ी कमाई का देश के टैक्स पेयर का संचय धन देश हित मे लगाने के नाम पर देश की स्वच्छता के लिए असल में सही ढंग से नहीं खर्च कर खुली लापरवाही करते हुए बिल पास होते रहते हैं.

कोई भी यह नहीं देखता कि जमीन स्तर पर स्वच्छता है भी कहीं या नहीं। अगर देश के आम आदमी शिक्षित वर्ग जागरूक हो कर हर जगह ख़र्च हो रहे धन, देश में, राज्य, जिला, तहसील, नगरपालिका या अन्य किसी भी विभाग के द्वारा स्वच्छता अभियान के तहत किये गए कार्य पर सूचना अधिकार के तहत सूचना लेकर यथार्थ स्थिति का अवलोकन करें तो पायेंगे कि जमीन स्तर पर किस तरह का परिणाम जो देखा वह सन्तोष जनक नहीं है क्योंकि सफ़ाई व्यवस्था पर ख़र्च या तो किया ही नहीं जाता और या कार्य करने के बाद रटारटाया बहाना बनाकर अन्य तत्थ पेश कर दिया जाता है.

[स्रोत- सतनाम मांगट]

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