फिर भी

काश एक दुनियाँ ऐसी भी होती

प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री एक अनोखी दुनियाँ की कल्पना कर रही है. जहाँ सब आनंद से रहे, कोई किसी का बुरा न चाहे और हर जगह बस प्रेम ही प्रेम हो. उस दुनियाँ में सृष्टि और उसमे बसे सारे बेज़ुबान जीव भी अपने दर्द रख पाये, जिससे हर मानव को इस बात का एहसास हो की दर्द सिर्फ मनुष्य को ही नहीं होता है। सृष्टि निस्वार्थ अपने सारे काम हर रोज़ करती है फिर भी अपनी महानता का बखान नहीं करती। अंत में बस यही कहूँगी अच्छाई और बुराई दोनों ही हमारे अंदर है अब ये आप पर निर्भर करता है आप किसे जगाये रखना चाहते है। कभी खाली बैठ इस प्रकृति से बाते करना फिर समझना कितना दुख झेलती है ये मानव के कारण।

अब आप इस कविता का आनंद ले।

काश एक दुनियाँ ऐसी भी होती,
जहाँ कोई किसी से नहीं लड़ता,
रहते सब अपने में मस्त,
कोई किसी से नहीं डरता।

काश एक दुनियाँ ऐसी भी होती,
जहाँ कोई किसी की कामयाबी से नहीं जलता,
बस अपने को करने में ठीक,
हर व्यक्ति का हर एक दिन गुज़रता।

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काश एक दुनियाँ ऐसी भी होती,
जहाँ प्रेम की भाषा ही सबको समझमे आती,
प्रेम ही प्रेम होता जीवन में,
ज़िन्दगी भी खुशियों से भरे गीत गाती।

काश एक दुनियाँ ऐसी भी होती,
जहाँ सब अपनी ज़िम्मेदारी समझते,
छोटी-छोटी बातो पर,
किसी दूसरे से न उलझते।

काश एक दुनियाँ ऐसी भी होती,
जहाँ कोई किसी पर बोझ नहीं होता।
निपटाकर अपनी दिन चरिया,
हर व्यक्ति चैन से सोता।

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काश एक दुनियाँ ऐसी भी होती,
जहाँ प्रकृति का हर बेज़ुबान अपनी बात रख पाता,
अपने दर्दो का एहसास भी वो,
हर मानव को करा पाता।

काश एक दुनियाँ ऐसी भी होती,
जहाँ गुस्से, अहंकार और लालच की जगह ही न होती,
ईमानदारी के बीजो से,
हर एक मानव की रचना होती।

काश एक दुनियाँ ऐसी भी होती।
काश एक दुनियाँ ऐसी भी होती।

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