फिर भी

जब कभी

प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री दुनियाँ को अपने दुखो से लड़ना सिखा रही है वह सोचती है जब भी तुम दुखी होतो अपने आस पास के वातावरण को देखो क्या पता कोई तुमसे भी ज़्यादा दुख में हो और वो फिर भी मुस्कुरा रहा हो ऐसे लोगो को देख पूरी मानव जाती को प्रेरणा मिलती है।

अब आप इस कविता का आनंद ले.

जब कभी गर्मी सताये, तो सूर्य से पूछना,
तू कैसे, हर मौसम में यूही जलता रहता है??
इतने कटाक्ष सुनकर भी तू कैसे हर हाल में चमकता रहता है??

जब कभी दिल भर आये,तो लेखक से पूछना,
तू कैसे हर हाल में लिखता रहता है??
अपने गमो के रहते तू कैसे किसी से कुछ नहीं कहता है।
अपने ही भावनाओ के समुंदर में,
तू हर पल में कैसे बहता है??

जब कभी ठण्ड सताया, तो हिमालये से पूछना,
तू कैसे ठण्ड में भी, बर्फ की चादर ओड़ लेता है??
किस बात का डर है तुझे,
जो जीवन में इतनी कड़ी परीक्षा तू देता है??

जब कभी शारीरिक कष्ट सताये, तो अपाहिज से पूछना,
तू कैसे अपने दुखो के रहते भी मुस्कुरा देता है??
अपने जज़्बे से कैसे तू इस दुनियाँ की सोच को भी हिला देता है??

जब कभी चला न जाये, तो वक़्त से पूछना,
तू कैसे भागता ही रहता है??
किसी की तुझे परवाह नहीं,
और अपने हक़ में तू कभी कुछ नहीं कहता है।

धन्यवाद

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