आज लिखने का मन तो नहीं था, लेकिन सोचा क्यों न आज थोड़ा, अलग सा लिखूँ, लेकिन आज न कोई poetryहोगी न कोई कविता बस एक सवाल होगा आप सबसे की आखिर कब तक लड़कियों को अत्याचार से छुटकारा मिलेगा, आखिर कब लड़कियों को उनका अधिकार मिलेगा।
कब आयेगा वो दिन,
जब हर लड़की चैन से सास लेगी??
कब आयेगा वो दिन,
जब लड़की बेख़ौफ़ अपने घर से निकलेगी??
आखिर कब इंसान की इंसानियत जागेगी,
कब वो हैवानियत भी खौफ से कापेगी??
आज यहाँ कल वहाँ, हाहाकार हुआ,
आज बाहर तो कल घर में शिकार हुआ।
कौन जाने इन पापियों की आत्मा कहाँ सोती होगी,
हर किसी की बेहन, बेटी और माँ तो ज़रूर होती होगी।
अरे ये नीच हरकत करने वालो सुनलो,
कोई रोये न रोये तुमपर, तुम्हारी माँ तो ज़रूर रोती होगी।
आखिर कब तक लड़कियाँ,
इस डर से डर डरकर भागेंगी।
आखिर कब ये ज़ालिम दुनियाँ जागेगी???
[स्रोत- वंश गर्ग]