प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री दुनियाँ को यह समझाने की कोशिश कर रही है कि जब क्रोध के बीज दो प्राणियों के मन में पनपते है और दोनों ही पक्ष लड़ने पर उतर आये तो इस लड़ाई में किसी का भी भला नहीं होगा इसलिए दोनों पक्ष आपस में बैठ कर अपनी-अपनी गलतियाँ स्वीकारे क्योंकि अक्सर बदले की लड़ाई में बहुत से मासूमो की जान भी जाती है कोई एक तो शांति की बात करे फिर भी अगर कोई न माने तो उसका सर्वनाश पक्का है क्योंकि सतयुग हो या कलयुग सत्यमेव जयते क्योंकि ईश्वर हमेशा सच का साथ ही देते है।
अब आप इस कविता का आनंद ले।
जब दोनों पक्ष ही लड़ना चाहे,
तो शांति कैसे आयेगी??
किस दिन आखिर किस दिन,
इस दुनियाँ को ये बात समझ में आयेगी।
शांति बनाये रखना हर एक के बस की बात नहीं।
बिन बात के जो बात बढ़ाये,
उसकी इस दुनियाँ के किसी भी,
ज्ञानी की नज़रो में औकात नहीं।
क्रोध की अग्नि में किसी को शांति नहीं मिलती।
तूफानों की ज्वाला के दूर-दूर,
तक भी, एक कली नहीं खिलती।
भस्म होजाते फिर सब ही उस आग में,
शांति के स्वर भी नहीं लगते, ऐसे क्रोध के राग में,
फिर भी जो हिंसा के मार्ग पर जायेगा।
ना केवल इस जन्म में,
वो तो जन्मो जन्मांतर तक तड़पता जायेगा।
अपने कर्मो द्वारा ही वो आगे तक ठोकर खायेगा।
इस जन्म का करा वो अगले जन्म में भूल जायेगा।
ये मानव वक़्त रहते तू लगने न दे बदले की चिंगारी,
शांति के पथ पर चल कर ही लोगो ने अपनी ज़िन्दगी है सवारी।
ये दुनियाँ सब की है,
ये है न केवल मेरी और ना ही तुम्हारी।
धन्यवाद।