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तुलसी विवाह क्या है? हिंदू शास्त्र की मान्यताएं एवं अनुकरण

तुलसी विवाह के दिन भगवान विष्णु अथवा उनके अवतार श्री कृष्ण का विवाह तुलसी के पौधे के साथ किया जाता है. इस विवाह का आरम्भ प्रभोदिनी एकादिशि से शुरू हो जाती है .लोग इस पर्व को मनाने के लिए इस दिन उपवास करते है और इस दिन खास कर रतालू, गन्ने का सेवन करते है,अन्य फल भी खाये जाते है.आज के दिन नमक और अनाज का सेवन वर्जित है.

इस वर्ष १ नवंबर २०१७ के दिन तुलसी विवाह का योग है.तुलसी विवाह वर्षा ऋतू के अंत और हिंदू विवाह के मौसम की शुरुआत का प्रतीक है. तुलसी को हिंदू धर्म में देवी के रूप में सम्मानित किया जाता है और कभी-कभी विष्णु की पत्नी माना जाता है, कभी-कभी विष्णुप्रिया के नाम से, “विष्णु का प्रिय” भी कहलाया जाता है तुलसी विवाह और उसके संस्कार के पीछे की कथा को शास्त्र, पद्म पुराण में बताया गया है.

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हिंदू शास्त्र के अनुसार, तुलसी पौधे वृंदा नाम की एक महिला थी, वह राक्षस-राजा जालंधर से विवाह कर चुके थे, जो विष्णु के धर्म और भक्ति के कारण अजेय बन गए थे. यहां तक ​​कि शिवशंकर विनाशक-जालंधर को हरा नहीं प् रहे थे इसलिए उन्होंने विष्णु से अनुरोध किया कि वह समाधान ढूंढ सकें. विष्णु ने खुद को जालंधर के रूप में प्रच्छन्न किया और वृंदा को धोखा देकर शुद्धता नष्ट कर दी, जलंधर अपनी शक्ति खो गया और शिवशंकर ने उसे मार दिया. वृंदा ने विष्णु को श्राप दिया की वे काले रंग के रूप में और अपनी पत्नी से अलग हो जाये ,इसीलिए उन्हें काला शालिग्राम पत्थर के रूप में भी जाना जाता है और उनके राम अवतार में, उनकी पत्नी सीता से अलग हो गया था, जिसे राक्षस-राजा रावण ने अपहरण कर लिया था.वृंदा फिर महासागर में खुद को डूबा गई, और देवताओं ने वृंदा की आत्मा को एक पौधे में स्थानांतरित कर दिया, जिसे तुलसी कहा जाता है .

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विष्णु के आशीर्वाद के अनुसार अपने अगले जन्म में वृंदा से शादी करने के लिए, विष्णु – शालिग्राम के रूप में प्रबोधिनी एकादशी पर तुलसी से शादी कर ली. इस दिन को मनाने के लिए, तुलसी विवाह का समारोह किया जाता है.

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