डोकलाम मामले पर भारत को कड़े तेवर दिखाने वाला चीन आखिर पीछे कैसे हट गया, जबकि डोकलाम विवाद को लेकर चीन ने युद्ध की तैयारियां तक कर ली थी फिर इतनी आसानी से लगातार दो महीने तक चले संघर्ष के बाद चीन के पीछे हटने के पीछे कोई चाल तो नहीं…? जी हां चीन के पीछे हटने के पीछे एक खास रणनीति है जिस पर हम चर्चा कर रहे हैं।
3 सितंबर से शुरू हो रहा है ब्रिक्स सम्मेलन
3 सितंबर से चीन के कुजियान प्रांत के शिआमेन में ब्रिक्स सम्मेलन होने जा रहा है। ब्रिक्स 5 देशों का समूह है जिसमें ब्राजील, रूस, भारत, चीन और साउथ अफ्रीका सम्मिलित हैं। ब्रिक्स सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जा रहे हैं। इस बार ब्रिक्स की मेजबानी करने का जिम्मा चीन को मिला है, जिसमें मिश्र, केन्या, तजाकिस्तान, मेक्सिको तथा थाईलैंड को अतिथि के रुप में चीन ने आमंत्रित किया है। चीन का सबसे बड़ा मकसद युवान (चीनी मुद्रा) को ब्रिक्स की आधिकारिक मुद्रा घोषित करना है, ऐसे में अगर चीन भारत के साथ विवाद खत्म नहीं करता तो उसकी इस योजना पर पानी फिर सकता था। युआन अगर ब्रिक्स की आधिकारिक मुद्रा घोषित हो जाती है तो सभी सदस्य चीन के ऊपर पहले से और अधिक निर्भर हो जाएंगे जिसका सीधा फायदा चीन को मिलेगा।
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वन बेल्ट वन रोड
ब्रिक्स सम्मेलन के अलावा भी “वन बेल्ट वन रोड” चीन की एक महत्वाकांक्षी योजना है जिसके जरिए वह एशिया, यूरोप और अफ्रीका के बीच व्यापार को नई दिशा देना चाहता है। भारत के द्वारा लगातार इस परियोजना का विरोध किया जा रहा है ऐसे में चीन डोकलाम को लेकर भारत के साथ अड़ा रहता तो चीन की इस योजना पर भी पानी गिर सकता था। चीन भी जानता है कि हाल के दिनों में भारत और अमेरिका के बीच करीबी बढ़ी है वहीं चीन और अमेरिका के संबंध पहले से अधिक खराब हो गए हैं। ब्रिक्स सम्मेलन ही एक ऐसा जरिया है जिसके द्वारा चीन वन वेल्ट वन रोड परियोजना को सफल बनाने की कोशिश करेगा।