प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री दुनियां को यह समझाने की कोशिश कर रही है कि ईश्वर हमसे कही बाहर नहीं वो हमारे अंदर ही बस्ते है नियंत्रण अभ्यास के द्वारा उन्हें जगाया जा सकता है लेकिन इस क्रिया में बहुत मुश्किलें आती है क्योंकि अगर ईश्वर हमारे अंदर है तो बुराई भी हमारे ही अंदर है इसलिए हमे समझ नहीं आता हम किस की बात सुने इसलिए नियंत्रण ईश्वर की ही दी हुई किताबो को पढ़कर हम खुदकी बुराइयों पर काबू पा सकते है।
अब आप इस कविता का आनंद ले।
अपनी ही बुनी गलत सोच से डरो,
पूजा भले ही कम करो।
क्योंकि ईश्वर कही और नहीं,
हम सब के हृदय में बस्ते है।
हमे कुछ गलत करता, या सोचते देख,
वो भी हम पर हसतें है।
सुनलो बात तुम भी उस ईश्वर की,
जो तुमसे कही बहार नहीं,
तुम्हारे अंदर ही बस्ते है।
ज़रा खोल के तो देखो ईश्वर की दी हुई किताबे।
उन्हें समझ, फिर हम ही, अपनी गलतियों पर हसतें है।
मगर इस वक़्त में, उस अनमोल ज्ञान के मोल. बड़े ही सस्ते है।
मुफ्त में भी तो कोई पहले सुनना नहीं चाहता।
फिर गलत कर खुदही,
बादमे मंदिरों में कही अकेले में अश्क बहाता।
अपने अंदर ही बसे, उस ईश्वर की आवाज़ जो भी समझ पाता।
जीवन के हर पड़ाव का लुफ्त, केवल वो ही उठाता।
धन्यवाद।