फिर भी

अपने दिन बहुरने के इंतजार में बाट जोहता बदहाल राजकीय प्राथमिक विधालय शिवहर (पश्चिमी)

शिवहर – सरकारें आती हैं जाती हैं लेकिन बदहाली जस की तस बनी की बनी रह जाती हैं इसका जीता जागता उदाहरण 1971 में स्थापित राजकीय प्राथमिक विधालय शिवहर (पश्चिमी) हैं। लगभग पाँच दशक पहले स्थापित यह विद्यालय आज भी अपनी बदहाली पर खून के आंसू बहाने को मजबूर हैं। इन पाँच दशकों में न जाने कितनी सरकारें आई गई लेकिन इसकी बदहाली आज भी जस की तस बनी हुई हैं। किसी भी उन्नत राष्ट्र की कल्पना सुदृढ़ शिक्षा व्यवस्था के बगैर नहीं की जा सकती हैं।

शिक्षा को अगर विकास की पहली सीढ़ी मान लें तो कोई अतिशयोक्ति नही होगी क्योंकि जहां शिक्षा हैं वहीं प्रकाश हैं जहां शिक्षा नहीं वहां अंधकार हैं। विगत वर्षों से सरकारें शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति का दंभ भरती रही हैं और इसके अनेक साक्ष्य भी प्रस्तुत किये गयें हैं लेकिन जिले का राजकिय प्राथमिक विधालय शिवहर (पश्चिमी) वर्तमान में भी बदलाव की बयार से अछूता हैं। इस विद्यालय में एकमात्र शिक्षिका कार्यरत हैं जिनके सहारे विद्यालय संचालित हैं।

 

जबकि विद्यालय में करीब 100 छात्र /छात्राओं का नामांकन हैं। जिसके विवरण इस प्रकार है कक्षा 1 में 6, कक्षा 2 में 23, कक्षा 3 में 19, कक्षा 4 में 34 तथा कक्षा 5 में 12 छात्र /छात्राएं अध्ययनरत हैं। विधालय में कुल तीन वर्ग कक्ष हैं लेकिन छात्र/छात्राओं के बैठने के लिए बेंच डेस्क की व्यवस्था नदारद हैं लिहाजा बच्चें अपने घर से लाये बोरे पर बैंठ कर पढ़ने को विवश हैं। एक ओर जहां बिहार सरकार एवं जिला प्रशासन पूरे जिले में शौचालय एवं पेयजल की व्यवस्था कराने की बड़े-बड़े दावे कर रही हैं तो वहीं दूसरी ओर शौचालय एवं पेयजल की व्यवस्था से कोसों दूर यह विद्यालय उनके दावे को मुँह चिढ़ा रहा हैं।

विधालय में कार्यरत रसोईया मंजू देवी का आरोप हैं समय से उसे वेतन नहीं मिलता हैं। जिसके कारण उसके सामने भूखमरी की समस्या उत्पन्न हो गई हैं। इतना ही नहीं विधालय का अर्धनिर्मित भवन पशुओं का तबेला बन कर रह गया हैं यहां गाय, बकरियां बांधी जाती हैं। विधालय में एकमात्र कार्यरत शिक्षिका कुमारी रंभा बताती हैं की शिक्षक का अभाव होने के कारण विधालय में पठन-पाठन का कार्य ठीक ढंग से नहीं हो पाता हैं तथा विद्यालय में एकमात्र शिक्षिका होने के कारण उनके अवकाश या विद्यालय के किसी काम से कहीं जाने पर मजबूरन विद्यालय को बंद रखना पड़ता हैं। जिस विद्यालय में इतनी समस्या हो आप सहज अंदाज़ा लगा सकते हैं कि वहां अध्ययनरत छात्र/छात्राओं का भविष्य संवारा जा रहा हैं या बिगाड़ा जा रहा हैं। देश के नौनिहालों को संविधान द्वारा प्राप्त मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार से वंचित करना संविधान का अपमान हैं।

[स्रोत- संजय कुमार]

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