मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा को दत्तात्रेय जयंती मनाई जाती है। धर्मशास्त्रों के अनुसार इसी दिन भगवान दत्त का अवतार हुआ था। भगवान दत्तात्रेय को विष्णु का अवतार माना जाता है। विश्व शांती मित्र मंडल के अध्यक्ष श्री आण्णासाहेब चव्हाण ने हमे बताया की दत्त जयंती घाटकोपर् के चिराग नगर में 1958 से मनाई जाती है। और इस उत्सव में सब जन जाती के लोग शामिल होतें है तथा कार्यकर्म को बढ़ावा देते है। मंडल की और से गणपति उत्सव का भी आयोजन होता है। दत्त जयंती के अवसर पर कई कार्यकर्म का आयोजन होता है ।
01/12/2017 दत्त भगवान की पालखी सोहळा का आयोजन होता है और उसकी भव्य दिव्य रैली निकलती है। भजन कीर्तन के नाम घोष के साथ इसमें महिला, पुरुष, लड़की, लड़के सब लोग तल्लीन होकर नाचते है. 03/12/2017 को सुबह 4:30 बजे काकड आरती, 7 से 8 अभिषेक, सुबह 9 से 11 होमहवन, महाप्रसाद भंडारा रात 7 से 12 बजे तक होता है।
हिंदू धर्म में भगवान दत्तात्रेय को त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश का एकरूप माना गया है। धर्म ग्रंथों के अनुसार श्री दत्तात्रेय भगवान विष्णु के छठे अवतार हैं। वह आजन्म ब्रह्मचारी और अवधूत रहे इसलिए वह सर्वव्यापी कहलाए।
दत्तात्रेय के अवतार श्रीपाद वल्लभ, नृसिंह सरस्वती, मणिक प्रभु दत्तसंप्रदाय प्रभाव महाराष्ट्र, कर्नाटक में प्रभावशाली है। गाणगापूर, नृसिंहवाडी, अक्कलकोट, गरुडेश्वर विजापूर कडगंची सायंदेव दत्तक्षेत्र – कर्नाटक, कोल्हापूर माणिकनगर – बीदर श्री दत्त मंदिर संस्थान रुईभर, उस्मानाबाद महाराष्ट्र कही कहानियाँ इसकी कथा अनेक ग्रंथों में उल्लेखित हैं।
अनुसूईया से भिक्षा मांगी मगर यह भी कहा कि आपको निर्वस्त्र होकर हमें भिक्षा देनी होगी यदि मेरा पातिव्रत्य धर्म सत्य है तो ये तीनों साधु छ:-छ: मास के शिशु हो जाएं। और ऐसा ही हुआ और बाद में अनुसया ने उन्हे स्तनपान किया। शंकर, ब्रह्मा, विष्णु घर नही लौटे तो लक्ष्मी, पार्वती व सरस्वती अत्रिपत्नी अनुसया के पास आकर देखा तो तिन्ही देव नन्हे बच्चे बने है।
देविया ने क्षमा मांगी और अनुसया ने उन्हे मुक्त कर दिया। प्रसन्न होकर त्रिदेव ने उन्हें वरदान दिया कि हम तीनों अपने अंश से तुम्हारे गर्भ से पुत्ररूप में जन्म लेंगे। तब ब्रह्मा के अंश से चंद्रमा, शंकर के अंश से दुर्वासा और विष्णु के अंश से दत्तात्रेय का जन्म हुआ।
[स्रोत- बालू राऊत]