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वाल्मीकि जयंती: जानिए डाकू रत्नाकर कैसे बन गये महर्षि वाल्मीकि

आज पूरा देश वाल्‍मीकि जयंती बड़े ही धूमधाम से मना रहा है, वाल्‍मीकि जयंती को लेकर लोगों में भारी उत्साह देखने को मिला रहा है जगह-जगह पर जुलुस और लोगों के द्वारा बनाई गयी झांकियां देखने को मिल रही है जिससे ये अंदाजा लगाया जा सकता है की वाल्‍मीकि जयंती के अवसर पर पुरे देश में लोगों के मन में महर्षि वाल्‍मीकि के लिए कितनी श्रद्धा है.Mahrisi Valmikiआज अश्विन माह की शरद पूर्णिमा है महर्षि वाल्मीकि का जन्मदिवस ‘वाल्मीकि जयंती’ के रूप में मनाया जाता है, महर्षि वाल्मीकि के साथ जीवन एक ऐसी घटना घटित हुई जिसके बाद उनका जीवन ही बदल गया.

वाल्‍मीकि आदिकवि के रूप में प्रसिद्ध हैं, उन्होने संस्कृत में रामायण की रचना की उनके द्वारा रची रामायण वाल्मीकि रामायण कहलाई. रामायण एक महाकाव्य है जो कि श्रीराम के जीवन के माध्यम से हमें जीवन के सत्य से, कर्तव्य से, परिचित करवाता है और हमे सच्चाई के रास्ते पर ही चलना चाहिए भले हमे कोई भी परेशानी आये.

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आपकी जानकारी के लिए बता दे, वाल्मीकि ने संस्कृत के प्रथम महाकाव्य की रचना की थी जो रामायण के नाम से प्रसिद्ध है, प्रथम संस्कृत महाकाव्य की रचना करने के कारण वाल्मीकि आदिकवि कहलाये. उनके जीवन का एक किस्सा हम आपको बताने जा रहे जिसके बाद वाल्मीकि का जीवन बदल गया और वो वाल्‍मीकि से महर्षि वाल्मीकि बन गये.

वाल्मीकि का नाम रत्नाकर था वो एक डाकू लुटेरे थे, अपने परिवार का पालन करने के लिए लोगों को लूटते थे, एक बार की बात है उनकी मुलाकात नारद मुनि से हुई. रत्नाकर उन्हें भी लूटना चाहता था. किन्तु उससे पहले नारद मुनि ने उनसे एक सवाल किया और कहा आप ये काम क्यों करते हो, रत्नाकर ने जबाब दिया-अपने परिवार का पेट पालने के लिए करता हूँ इस बात को सुनकर नारद मुनि ने कहा क्या आपके परिवार वाले इस अपराध के पापों का फल भुगतने के लिए तैयार होंगे?

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इस बात को सुनकर रत्नाकर सोच में पड़ गया, वह नारद मुनि को पेड़ से बांधकर उस सवाल का जबाब लेने घर चला गया और उसको घर वालो से उत्तर मिला की कोई भी परिवार का सदस्य इस पाप का फल भोगने के लिए तैयार नहीं था. रत्नाकर आवास लौटा और नारद मुनि के चरणों में आकर गिर गया, और कहा नारद मुनि मुझे ज्ञान दे. नारद मुनि ने उन्हें राम नाम जपने की सलाह दी. इसके बाद रत्नकार राम रास में इतने डूब गये की रत्नाकर से महर्षि वाल्मीकि कब बन गये पता ही नहीं चला.

इस कहानी से ये सीख मिलती है अगर आप भी कुछ ऐसा ही कर रहे है तो अपने आपको इस दलदल से निकाले और सही रास्ता चुने.

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