फिर भी

खुद को समझो-तुम अनमोल हो

प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री दुनियां को यह समझाने की कोशिश कर रही है कि इंसान शांति की तलाश में इधर उधर भटकता है जबकि शांति तो हर जीव के हृदय में वास करती है बस दुख केवल इस बात का है कि लोगो के पास इतना वक़्त ही नहीं कि वो दो पल खुदके संग बैठ उसे अपने अंतर मन में ढूंढ कर उससे बातें करे हर इंसान के अंदर ही वो कीमती खज़ाना है बस फर्क इतना है कि कुछ लोग इस बात को मान कर इस पर अमल करते है और कुछ लोग इस बात को बस किताबी बातें ही रहते देते है। याद रखना दोस्तों शांति में शांति से बैठ कर शांति से खुदसे बातें करो तुम्हारे सारे सवालो के जवाब तुम्हे तुम्हारे अंदर ही मिलेंगे।

अब आप इस कविता का आनंद ले।

खुदको समझाना कभी-कभी मुश्किल लगता है।
अपने को पहचान कर,क्या कोई ये बता सकता है??
तुम कौन हो कहाँ से आये हो,
अपने अनोखे गुणों की सुंदरता तुम कहाँ से लाये हो??
कौन है तुम्हारे अंदर, जो हर पल तुम संग रहता है,
विपरीत परिस्थितियों के रहते, वो तुमसे बहुत कुछ कहता है।
जिसने बनाया तुझे , जिसने बनाया मुझे ,
पनपे वो हम सब में ही, बस इसकी खबर नहीं तुझे।
झाँक ज़रा, दो पल खुदमे, और पहचान कर उसकी,
भटक रही है ये कायनात भी तलाश में जिसकी।

धन्यवाद

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