फिर भी

विश्वास रखो अपने विश्वास पर

प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री दुनियाँ को यह समझाने की कोशिश कर रही है कि अपने विश्वास पर आजीवन विश्वास रखना कोई सरल कार्य नहीं क्योंकि ये मन बड़ा ही चंचल है ये हमे कभी कभी अंदर से इतना तोड़ता है की इंसान का खुदसे विश्वास ही उठ जाता है और फिर वो इंसान खुदसे ज़्यादा किसी और पर विश्वास करने लगता है अपनी क्षमताओं को भूल जाता है।

कवियत्री सोचती है अगर इंसान के इरादे नेक और पक्के है तो ब्रम्हांड की कोई भी शक्ति उसके सपनो को पूरा करने से रोक नहीं सकती बस शर्त यही है की राह सच्ची और कल्याण कारी होनी चाहिये क्योंकि ऐसी परोपकारी राह में तो ईश्वर भी इंसान का साथ देते है बस वक़्त से पहले किसी को अपनी इच्छाये खुल के मत बताओ पहले खुद करके दिखाओ फिर लोगो को बताओ वरना कोई तुम्हारी बात नहीं मानेगा बस अपने विश्वास पर विश्वास रखो क्योंकि तुम्हारा सपना कोई और नहीं देख सकता।

अब आप इस कविता का आनंद ले।

विश्वास रखो अपने विश्वास पर,
तुम्हारा विश्वास ही जीतेगा।
दुख का चाहे, कितना गहरा क्षण ही क्यों न हो,
वो भी तुम्हारा सुख में ही बीतेगा।
क्योंकि अपने विश्वास पर विश्वास रखने वाले,
लोग बहुत ही कम होते है।
दूसरों को महान समझ उन पर खुदसे ज़्यादा भरोसा कर,
लोग अक्सर धोखा खाके रोते है।
तुम्हारी क्षमताओं का सच, केवल तुम ही जानते हो।
अपने विश्वास की शक्ति को केवल तुम ही तो मानते हो।
फिर कैसे कोई यकीन करले तुम्हारी बातो पर,
तुम्हारे विश्वास का प्रमाण पहले तुम्हे ही देना होगा।
अपने विश्वास की पूर्ति की राह में तुम्हे किसी से कुछ नहीं लेना होगा।
क्योंकि जब वही विश्वास हकीकत बनकर आयेगा।
तुम्हारे विश्वास पर फिर सबको भी विश्वास हो जायेगा।

धन्यवाद।

Exit mobile version