जन्म कुण्डली में अनेक योग देखने को मिलते हैं जैसे गजकेसरी योग, धनलक्ष्मी योग, बुधादित्य योग, इत्यादि । परन्तु कुछ योगों के नाम इतने भयावह होते हैं कि जातक डर जाता है या भ्रमित हो जाता है, उदाहरणस्वरूप विष योग, गुरूचाण्डाल योग, आदि ।
आज इस लेख में हम विष योग पर संक्षिप्त चर्चा कर रहे हैं ।
कुण्डली में शनि और चन्द्रमा की युति या परस्पर सम्बन्ध से यह योग बनता है । शनि और चन्द्रमा दोनों विपरीत स्वभाव के ग्रह हैं । शनि उग्र हैं, चन्द्रमा शीतल और सौम्य हैं । जहाॅं शनि अपनी अत्यन्त धीमी गति के लिए जाने जाते हैं वहीं चन्द्रमा अपनी दु्रत गति के लिए विख्यात हैं । विद्वानों के मतानुसार रावण ने क्रोध में शनि को उनकी दार्यीं टांग पकडकर इतनी जोर से पटका था कि शनि अपंग हो गये, जिससे उनकी चाल धीमी हो गयी और उसी दिन से उनका नाम शनिश्चर पडा ।
चूंकि विष योग में दो पूर्णतयाः विपरीत स्वभाव के ग्रहों का संयोग होता है, अतएव जीवन में उथलपुथल मची रहती है । दशा-अन्तर्दशा में जब शनि का प्रभाव बढता है तो जातक समय पर उचित निर्णय नहीं ले पाता है और जब चन्द्रमा का प्रभाव बढता है तो निर्णय जल्दी ले लेता है जो अधिकतर गलत सिद्ध होता हैं । इस तरह जातक की निर्णय करने की क्षमता दुर्बल हो जाती है ।
यदि शनि और चन्द्रमा की युति में पाॅंच अंश यानि डिग्री से कम की दूरी हो, तब यह योग बहुत बुरा प्रभाव डालता है और मानसिक व भावनात्मक रूप से बहुत कमजोर कर सकता है ।
नाम के अनुसार जातक के जीवन में विष का भी प्रभाव दिखाई देता है । ऐसे जातक की विषाक्त भोजन से बीमार पडने की आशंका रहती हैं । विष योग का आठवें और तीसरे भाव से सम्बन्ध हो तो जातक स्वयं ही विष खाकर आत्महत्या का भी प्रयास कर सकता है । कुण्डली में सर्पयोग भी हो तो सर्पदंश की भी आशंका बनी रहती है । स्वप्न में भी साॅंप पीछा नहीं छोडते । अन्य कीडे या पशु भी काट सकते हैं । शल्यचिकित्सा भी करवानी पड सकती है । घाव भी देर से भरते हैं ।
ऐसे जातकों को सर्दी जुखाम की सम्भावना बनी रहती है ।
इन सभी दोषों के बावजूद विष योग के कुछ सकारात्मक पहलू भी हैं । यह योग यदि शुभ भाव में हो तो जातक धैर्यवान, ठंडी और धीर प्रकृति का होता है और ऐसे स्वभाव के कारण जहाॅं भी उठता बैठता है अपनी एक अलग पहचाना बनाता है । यदि गुरू की दृष्टि हो तो विष योग के दुष्प्रभावों को सहकर जातक और अधिक मजबूत व्यक्तित्व लेकर उभरता है । ऐसे जातकों को मानसिक अवसाद का भी डर रहता है परन्तु शुभ ग्रहों की दृष्टि से जातक ऐसी बीमारियों से भी उबर जाता है। ऐसा जातक ठोकर खाकर सीखने वालोें में से होता हैं ।
चन्द्रमा का प्रभाव होने के कारण जातक का कैरियर काफी परिवर्तनशील रहता है । ऐसे जातक को कैरियर के लिए कला, लेखन या यात्रा के क्षेत्र का चुनाव करना चाहिए । सफल लेखकों व विचारकों की कुण्डली में यह योग पाया जाता हे ।
ऐसा जातक अधिकतर बहुमुखी वर्सेटाइल होता है जिसमें विभिन्न विधाये या गुण देखने को मिलते हैं । ये किसी एक शौक या काम से बंधकर नहीं रहता । किसी एक काम में सफल न हों तो हार नहीं मानता और दूसरे किसी गुण या शौक में डूब जाता है ।
गुरू की दृष्टि यदि उस भाव पर पडें जहाॅ शनि-चन्द्रमा युति करते हैं तो इस योग के दुष्प्रभाव कम हो जाते हैं । यह योग बुध के घर में हो या बुध की दुष्टि हो तो ऐसा जातक सफल चार्टड एकाउण्टेण्ट बन सकता है ।
अतएव किसी एक योग या दोष को देखकर जातक के जीवन या व्यक्तित्व का आंकलन सर्वथा गलत ही सिद्ध होता है । मात्र विष योग होने के कारण जातक के जीवन को पूर्णतयाः विषग्रसित नहीं माना जाना चाहिए । प्रत्येक योग अपनी दशा-अन्तर्दशा आने पर ही प्रभावी होता है अन्यथा सूक्ष्म अन्तर्दशा में अपना हल्का प्रभाव ही कर पाता है ।
विष योग वाले जातकों को जीवन भर ओम नमः शिवाय का जाप करना चाहिए । ऐसे जातकों को दूसरों से चन्द्र और शनि से सम्बन्धित उपहार नहीं ग्रहण करने चाहिए ।
विशेष:- ये पोस्ट इंटर्न पारुल अग्रवाल ने शेयर की है जिन्होंने Phirbhi.in पर “फिरभी लिख लो प्रतियोगिता” में हिस्सा लिया है, अगर आपके पास भी है कोई स्टोरी तो इस मेल आईडी पर भेजे: phirbhistory@gmail.com