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बिहार का ये गांव भी जल्द ही भारत के नक़्शे से मिटने वाला हैं

किशनगंज- बारिश के दिनों बिहार की इन जगहों की चर्चाएं पूरे जोरो पर रहती है. अखबार के पन्नो में भी इनकी तस्वीरें लगातार नज़र आती हैं क्योकि सरकार द्वारा किये गए अधूरे काम यहां के गाँवो को सुर्ख़ियो में लाने का काम कर ही देते हैं. मगर यह सुर्खिया इन गाँवो के मिटने और न रहने वाली होती हैं और इन सबकी जिम्मेदार कोई और नहीं हैं सरकार और लापरवाह अधिकारियो के अलावा कोई और नहीं हैं.Bihar tola village in kishanganj

हम बात कर रहे हैं धनतोला पंचायत स्थित बिहारटोला व कामत गाँव की. इस बार बाढ़ में तो यह गांव पंचायत के नक्शे से गायब ही हो जाने वाला था, किन्तु ऐसा हो ना सका. हालांकि पिछले 2 सालों में कई टोला जैसे मुशहरी, कैम्प टोला नदी के भेंट चढ़ चुके हैं. इस बाढ़ ने अपना पेट भरने के लिए इन गांवों के लोगों और उनके सपनो को निगलने कार्य भली भांति किया है.

नदी के कटान को लेकर लोगों ने कई बार प्रशासन से गुहार भी लगायी हैं, किन्तु विभाग की उदासीनता ही यहां की तकदीर बन गयी थी. अब गरीबो की जुबान गुहार लगाते लगाते ऐंठने लगी हैं मगर प्रशासन की और अधिकारियो की मदद रूपी पानी की बूंदे इन गांव वालो के मुँह तक नहीं पहुंच रही हैं और अगर पहुंच भी रही हैं तो बहुत कम.

यह राहत की बात है कि कुछ ही दिन पहले कटान को रोकने के लिए बांध निर्माण का कार्य पूरा कर लिया गया है और उन जगहों पर बोरे में रेता भर कर दे दिया गया है, जहां फिर से कटान होने का खतरा था. खासकर स्कूल के पास. इस बांध से करीब कई गांवों के लोगों को काफी सुकून मिला है. इस जगह स्थित एकमात्र प्राथमिक विदयालय का भविष्य भी कुछ सालों के लिए सुरक्षित होता नजर आ रहा है लेकिन चिंता की बात यह है कि स्कूल से दक्षिण स्थित बिहारटोला अभी भी पूर्णतया सुरक्षित नही हो पाया है.

यहां गौर करने वाली बात है यह यहां का एकलौता ऐसा गांव बचा है जो बाढ़ में नही कटा है. शायद प्रशासन को यह बात नहीं भा रही हैं. चिंतनीय है कि नदी ठीक इस के बगल से बह रही है, जिससे पुनः इस बार बारिश में कटान का भय लोगों को सता रहा है. बांध का कार्य गाँव के आधे तक ही किया गया है. जहां सबसे अधिक जरूरत थी, वही पर अधूरा बांध का निर्माण किया गया है.

ऐसे में अभी भी वहां के लोग खासा चिंतित हैं. गांव के आधे तक ही बांध बनाना किसी के पल्ले नही पड़ रहा है कि ऐसा क्यों किया गया है. क्या कोई राजनीति साज़िश है या प्रशासन के पास इस गाँव के लिये कोई एस्टिमेट ही नही है? राहत की बात यही है कि स्कूल को सुरक्षित कर लिया गया है. मगर अकेला वह स्कूल ही क्या करेगा जब गांव बह जायेगा.

[स्रोत- निर्मल कुमार]

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