प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री समाज को आजीवन सही दिशा में चलने की प्रेरणा दे रही है। इन पंक्तियों द्वारा वह अपने आप से ही सवाल जवाब कर रही है कि क्या हर इंसान में सही और गलत पहचानने की समझ होती है? अगर ऐसा है तो ये बात समझ में आती है की बुरे करने वाले के साथ बुरा ही होता है लेकिन फिर अच्छाई के साथ बुरा क्यों होता है? क्यों अच्छाई को कदम-कदम पर परीक्षा देनी होती है, शायद इसलिए क्योंकि ईश्वर अच्छे इंसान को और अच्छा बनना चाहते है जिससे अच्छे इंसान इस जगत के लिए प्रेरणा बन जाये।कवियत्री कहती है महात्मा लोग ईश्वर को अपने अंदर ही खोज, अपने ईश्वर से हर क्षण वार्तालाप करते है।
अब आप इस कविता आनंद ले।
अच्छे बुरे की पहचान क्या सबको आती है?
तो फिर क्यों जीवन की ठोकरें
इंसानियत भी खाती है ??
बुरे के साथ बुरा हो,
ये समझमें असानी से आता है।
अच्छा तो अच्छा कर भी , फिर जीवन में चोट क्यों खाता है?
अच्छाई का जन्म, दुख सहकर ही होता है।
बिन वजह सहता जो पीड़ा,
जीवन के अंतिम पड़ाव में बस वही चैन से सोता है।
जिसकी अच्छाई को देख,
उसके जाने के बाद, उसे समझ, उसकी याद में ये जग भी रोता है।
उसके रहते कहाँ किसी पे,
उसको पहचानने का वक़्त होता है??
जिसने वक़्त रहते पहचाना,
वो भी उस महात्मन की भाती,
इस जीवन की गहराई को जानने में खोता हैं।
इस राह में चलने वाला हर एक व्यक्ति,
अपने लिए ही नहीं, दूसरो के दुखो में भी रोता हैं।
इस राह में ही, उसका उसके ईश्वर से मिलन होता है।
इस दुनियाँ की भीड़ में ढूंढ़ता नहीं वो अपने परमात्मा को,
अपने अंदर ही, उस शक्ति को पहचान,
उसका अपने ईश्वर से वार्तालाप का सिलसिला शुरू होता है।
जिसके रहते वो कभी इस माया भरी दुनियाँ में नहीं खोता है।
अपनी हर ज़िम्मेदारी को पूरा कर,
जीवन की आखिरी सांस भी चैन से लेकर ,अपने शरीर को छोड़ता है।
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धन्यवाद, कृप्या आप ये कविता बहुत लोगो तक पहुँचाये जिससे बहुत लोग सही ज्ञान तक पहुँचे। हमारी सोच ही सब कुछ है हम जैसा सोचते है वैसे ही बन जाते है।