फिर भी

सहानुभूति

प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री दुनियां को यह समझाने की कोशिश कर रही है कि सहानुभूति का मतलब ये नहीं की आप किसीको बेचारा समझे सहानुभूति अगर किसी से रखनी ही है तो आप पीछे से भी ऐसेही व्यवहार रखे जैसे आप लोगो से सामने से रखते है क्योंकि ऐसी सहानुभूति ही लोगो का उत्साह बढ़ाती है और लोगो के रिश्तों को मज़बूत करती है।

याद रखना दोस्तों ऐसी आदत हर एक में नहीं होती और ये आदत जिसमे भी होती है उसका ऐसा व्यवहार ही उसे भीड़ में अलग दिखाता है अब ये आप पर निर्भर करता है आप यहाँ कैसे जीना चाहते है।

अब आप इस कविता का आनंद ले।

सहानुभूति मिल किसीका उत्साह बढ़ जाता है।
उस उत्साह के रहते ही, इंसान का हौसला भी बढ़ जाता है।
किसीको टूट कर, तो किसीका साथ मिल,
इंसान को जीवन का ये गहरा सच समझमे आता है।
सहानुभूति वो नहीं जो किसीको बेचारा समझ कर दी जाती है।
ये है एक अनोखी आदत, जो तुम्हे भीड़ में अलग दिखाती है।
समझते हो जो किसी का दर्द,
तो उसका साथ पीछे से भी ना छोड़ना।
बंधन बांधना ऐसे की, फिर उसको कभी अपने व्यवहार से ना तोड़ना।
रूठे को भी प्यार से मनाकर, तुम बस प्यार का बंधन जोड़ना।
दूसरो के खातिर तुम अपनों से कभी मुँह ना मोड़ना।

धन्यवाद

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