फिर भी

सुकून-ए-इंसानियत

sukun e insaniyat poetry

ज़िंदा है हम पर मौत का इंतज़ार हम करते से हैं
गुजारते से हैं जिंदगी, जीते नहीं
वक़्त बदलता है, ऋतुएँ गुज़र सी रही है
पर हम क्यों सोचे?
हम क्यों समझे की वक़्त की अहमियत क्या है?
हम क्यों सोचे की एक पहल हमारी, किस हद्द तक बदलाव ला सकती है?

क्यों? ह्रदय हमारा, जब धीरे से धड़कता है
डरते हैं कहीं रुक न जाये..
अरे! सोचो की अगर रुकना है तोह रुक जाये,
पर उसी पहले चलो किसी के लिए कुछ अच्छा कर जाएं

जीवन एक उपहार है हम समझेंगे कब,
अहसान समझ के जीने की तमन्ना को रुखसत करेंगे कब?

औरो को कहते हैं,
नफरत है हमें तुमसे
नापसंद हो तुम हमें
सोचो की क्या किसी की दिलचस्पी तुम्हारी राय में है?

नाह! व्यक्ति विशेष अपने कर्मो से बनता है
व्यर्त के मूल्यों में जीवन बिताना मूर्खो की निशानी है

उम्मीदों के सब्ज़ बाग़ सजाना इंसानी फितरत है
ज़रा उन उमीदो को किसी और के लिए बनाना तोह सीखो!
इंसानियत में जो सुकून है
ज़रा ! आज़मा कर तोह देखो

विशेष:- ये पोस्ट इंटर्न नमिता कौशिक ने शेयर की है जिन्होंने Phirbhi.in पर “फिरभी लिख लो प्रतियोगिता” में हिस्सा लिया है, अगर आपके पास भी है कोई स्टोरी तो इस मेल आईडी पर भेजे: phirbhistory@gmail.com

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