प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री दुनियां को यह समझाने की कोशिश कर रही है कि ऐसा नहीं है की सीधे और सच्चे इंसान में बुराई नहीं पनपती जो खुदपर नियंत्रण पाना चाहते है जैसे साधु संत उनके अंदर भी बुराई का बीज होता है लेकिन कड़ी साधना कर वो उसे खत्म कर देते है। लेकिन ये क्रिया केवल एक दिन में तो नहीं होती इसे पाने में कई साल और महीने लग जाते है कितनो को तो ना जाने कितने जन्म लेने पड़ते है उस परम शांति को प्राप्त करने के लिए लेकिन जो लोग इस रास्ते पर चलते है वो दुनियाँ में रहकर भी दुनियाँ से कटे रहते है क्योंकि वो अपने विचार दूषित नहीं करते और उनकी छोटी छोटी गलतियाँ भी ये दुनियाँ पकड़ लेती है और उनके खिलाफ बहुत कुछ कह देती है।
अब आप इस कविता का आनंद ले।
साधु इंसान दुनियाँ में,
रहकर भी दुनियाँ से कटा हुआ क्यों रहता है??
अपनी बातें वो क्यों किसी से,
खुल कर नहीं कहता है ?
शायद इसलिए क्योंकि स्वयं से लड़ाई कर,
वो हर पल अंदर ही अंदर बहुत कुछ सहता है।
उसके दर्द ना दिखे किसी को,
इसलिए वो अपने में ही चुप चाप रहता है।
दूसरो से लड़ना है आसान,
खुदपर काबू पाकर ही,
बनाई बहुत से वीरो ने अपनी अनोखी पहचान।
जो है अगर बहुत अच्छाई तुममे,
तो उतनी बुराई भी तुमसे परे नहीं।
झलक जो जाये ज़रा भी बुराई,
किसी अच्छे इंसान में,
उसकी अच्छाइयों को भूल,
फिर लोग ही कहते,
इससे बुरा तो कोई इस दुनियाँ में नहीं।
धन्यवाद।