आज-कल की भाग-दौड़ भरी दिनचर्या में प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन के हर पहलू पर खुश रहना चाहता है और उस खुशी को पाने के लिए दुनियाँ में दर-दर भटक रहा है। अब सवाल यह है कि ऐसा क्या किया जाए कि सुख और दुःख इन दो अवस्थाओं का असर हमारी जिंदगी पर न रहे और हम शांतिपूर्वक खुशी से एक स्वाभाविक जिंदगी जिये।
ईश्वरीय शक्ति का अर्थ केवल यह नहीं है कि हम प्रार्थनाओं के द्वारा ईश्वर को याद करें, ईश्वर के खुद यह वाक्य है कि वह तो सर्वत्र हैं, कण-कण में व्याप्त है। इसी बात से निष्कर्ष निकलता है कि ईश्वर हम सभी के बीच भी उपस्थित है इसलिए निराश होने पर किसी धार्मिक स्थल पर जाना बिल्कुल भी आवश्यक नहीं है।
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ईश्वर की उपस्थिति प्राप्त करने के लिए हमें बस अपने क्रोध,पाप व मोह के मायाजाल को दूर कर अपने ही देह रूपी मंदिर को इतना पवित्र बना लें कि जब हम उस परमात्मा को पुकारे तो हमारी पुकार बिना किसी धार्मिक स्थल पर पहुंचे ईश्वर तक सुन ली जाए क्योंकि परमात्मा ही हमारी सृष्टि का रचयिता है, तो हम सभी कौन होते हैं उसका आकार-निराकार तय कर उसकी भक्ति करने वाले? इस तरह हम ईश्वर की एक निश्चित आकृति,नाम और स्थान बना रहे हैं जबकि ये सिर्फ मानव की कल्पना का स्वरूप है।
ईश्वर की ऊर्जा सभी जगह मौजूद हैं, जरूरत है बस ध्यान देने की। प्रकृति के चारों ओर इसका उदाहरण दिखाई देता है जैसे – सूर्य, चंद्रमा, तारे, नदियां, पर्वत आदि हर क्षण अपनी परम ऊर्जा का संकेत देती हैं। ईश्वर को पहचानने की क्षमता जरूरी है। जिस तरह माँ-बाप ईश्वर का ही रूप है क्योंकि उन्हीं के कारण हम दुनिया देख रहे हैं। इस जगत के रचियता अर्थात कर्ता-धर्ता बहुत शक्तिशाली है, उसे सब ज्ञात है। प्राणी जगत व्यर्थ ही सुख-दुःख के भेद में चिंतित हैं। हमें उसकी इच्छा में खुश रहना सिखना होगा। इस दुनिया में सबसे ज्यादा दयालु और प्रेम करने वाला ईश्वर हैं।
हम सभी का यह कर्तव्य है कि हम अपनी आत्मिक क्षमता को पहचानने का प्रयास करें,आज हमारे साथ जो कोई भी विपरीत परिस्थितियों में खड़ा है वह ईश्वर के द्वारा ही भेजा हुआ है जो हमें किसी तरह आगे बढ़ने का मार्गदर्शन कर रहा है और प्रसन्न कर रहा है। हमें चाहिए कि हम कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी अपनो पर भरोसा करना ना छोड़े व ईश्वर की हर चाह का सम्मान करें।