फिर भी

तो ऐसे हुआ आदम और हव्वा का जन्म

आप सब बचपन से यही कहानी सुनते आए हैं की सृष्टि की शुरुआत आदम और हव्वा के माध्यम से हुई थी। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि यह आदि युगल आदम और हव्वा कहाँ से आए थे और उनका जन्म कैसे हुआ था। आज वैज्ञानिक शायद इस गुत्थी को कुछ हद तक सुलझा लेने के नजदीक पहुँच गए हैं।Human And Universeकैसे हुई धरती पर ज़िंदगी की शुरुआत:

धरती पर जिंदगी की आरंभ डायनासौर से हुआ था, यह एक वैज्ञानिक और प्रमाणित सत्य है। लेकिन यह डायनासौर कहाँ से आए और इनका जन्म कैसे हुआ, इसपर निरंतर शोध चल रहा है। ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ इडनबर्ग के अन्तरिक्ष वैज्ञानिकों ने इस संबंध में कुछ खुलासे किए हैं। उनका मानना है कि पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत, अन्तरिक्ष से होने वाली धूल कणों की बारिश से हो सकती है।

विभिन्न ग्रहों का आवागमन:

अभी हाल ही में एस्ट्रोबायोलॉजी नाम के जर्नल में अन्तरिक्ष वैज्ञानिकों ने यह माना है कि अन्तरिक्ष से बहकर आने वाले धूल कणों के कारण पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत होने की संभावना है। इनका मानना है कि ब्रह्मांड में फैले हुए धूल कण 70 किलोमीटर की स्पीड से पृथ्वी के वायुमंडल से टकराते हैं।अन्तरिक्ष वैज्ञानिक इसे लगातार होने वाली बमबारी भी कहते हैं।

धूल की बमबारी:

धरती के ऊपर 150 किलोमीटर की दूरी पर जो धूल कण वायुमंडल में होने के कारण वो उनसे टकराकर बाहर निकल जाते हैं। लेकिन लगातार होने वाली धूल कणों की बारिश उन कणों को वापस पृथ्वी की ओर धकेल दे देती है। इसी प्रक्रिया में कुछ कण पृथ्वी की सतह पर पहुँच जाते हैं।

इसी शोध में यह भी सिद्ध हो गया है कि इस बमबारी में धूल कणों के साथ ही कुछ प्रकार के जीवाणु, पौधे और सूक्ष्म जीव अन्तरिक्ष के वातावरण में भी जीवित रह सकते हैं। वैज्ञानिक अब इस नतीजे पर पहुँच गए हैं कि इस प्रकार का जीवन अगर पृथ्वी के वायुमंडल में मौजूद हैं तो वह ब्रह्मांड की धूल वर्षा के कणों के साथ कहीं भी पहुँच सकते हैं। न केवल इतना बल्कि पृथ्वी के सूक्ष्म जीव भी इसी प्रकार किसी भी ग्रह पर पहुँच सकते हैं। इस प्रकार यह आवागमन ब्रह्मांड के किसी भी ग्रह पर संभव हो सकता है।

दूसरे ग्रहों का जीवन:

भारत के निवासियों के लिए गर्व की बात यह है कि इस शोध में भारतीय मूल के वैज्ञानिक अर्जुन बरेरा भी शामिल हैं। उनका मानना है कि ब्रह्मांड के सारे तारामंडल में यह धूल के कण मौजूद हैं और शायद इसी दूसरे ग्रहों पर जीवन के कारण भी हो सकता है।

सोच में बदलाव:

1871 में पेन्सपेरमिया की शोध में यह सुझाया गया था कि ब्रह्मांड केवल ओर्क्गेनिक कंपाउंड से मिलकर बना है इस सोच को भी अब बदलने का समय आ गया है। इसके अतिरिक्त अब तक सभी अन्तरिक्ष वैज्ञानिक पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति को ग्रहों पर होने वाली किसी बड़ी टक्कर को मानते थे। लेकिन इस नयी खोज ने इस सोच में बदलाव कर दिया है।

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