फिर भी

बीमार हूँ लाचार नहीं

प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री दुनियाँ को यह समझाने की कोशिश कर रही है कि बीमार इंसान खुदको कभी बीमार न समझे क्योंकि आपकी बीमारी से ज़्यादा आपकी इच्छा शक्ति काम करती है। अपनी बीमारी के बारे में बार-बार सोच कर आप उसको और बढ़ा देते हो अब इसका मतलब ये भी नहीं है कि आप डाक्टर के पास ही मत जाओ क्योंकि दवाई और हौसला दोनों ही चाहिये

अपनी बीमारी से लड़ने के लिए हौसला होगा तो वही दवाई आपको जल्दी ठीक और तंदरुस्त कर देगी और नहीं होगा तो आपका मन आपको बहुत डरा देगा और फिर जब आप सबको अपनी बीमारी के बारे में बताओगे तो फिर आप सबकी नज़रो में बेचारे बन जाओगे बीमारी में भी वैसे ही रहो जैसे हर दिन खिलखिलाते हो याद रखना दोस्तों ये सब बातें कहनी आसान है लेकिन करती उतनी ही मुश्किल फिर भी कोशिश करो कोशिश करने वालो की कभी हार नहीं होती बीमारी से लड़ो उस दरमियाँ लाचार मत बनो,उस वक़्त भी अपनी लाठी स्वयं बनो।

अब आप इस कविता का आनंद ले।

बीमार हूँ लाचार नहीं,
इस मन ने इन हालातो में भी,
क्या खूब है मुझसे कही।
बीमारी में भी बस खुदको बीमार मत समझना,
हौसला जो तोड़े तेरा,
सबकी बाते सुन, तू उन बातो में न उलझना।
क्योंकि ये वक़्त तो गुज़र ही जायेगा।
अपने हाले दिल जो तू,हर किसी को खुल के बतायेगा।
अपनी ही नहीं फिर इस दुनियाँ की नज़रो में भी तू बेचारा बन जायेगा।
थाम अपना हाथ और चैन से ये वक़्त बिताते।
अपने हौसले की चमक, तू आज ही सबको दिखादे।
हर परिस्थिति में तुझे मुस्कुराना है।
अपने को थामे, तुझे दुनियाँ को ये प्यार से बताना है।
इच्छा शक्ति बीमारी से कही ज़्यादा है।
तुझे तोड़ने का करा तेरी बीमारी ने इरादा है।
मत सुन ज़्यादा इस बावरे मन की,
बीमारी है तो केवल इस तन की।
मन को कर काबू और सोच अच्छा।
जीवन की गहराई को और समझने में,
तू है अभी भी एक छोटासा बच्चा।

धन्यवाद।

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