फिर भी

भारत की पहली महिला डॉक्टर रखमाबाई राऊत का 153 वीं जयंती पर गूगल पर सम्मान

जन्म – 22 नवंबर 1864
मौत – 25 दिसंबर 1955
डॉ.रखमाबाई राऊत को गूगल की श्रद्धांजलि
22 नवंबर – डॉ. रखमाबाई की 153 वीं जयंती पर भारत उन्हे भूल गया है.

वह लगभग 92 साल तक जीवन में बीमार कि सेवा में समर्पित किया, बाल विवाह के प्रथा के अनुसार एक बच्चे के रूप में 10 वर्ष की उम्र में दादजी विवाह किया था. शादी के कुछ साल बाद वह अपने मायके में रही बाद में उनके पति ने उन्हे ससुराल आना चहिए ऐसी मांग की रखमाजी पढ़ लिखकर एक डॉक्टर बनना चाहता थी उन्हें विदेश जाना था यदि वो ससुराल गयीं तो उन्हे स्वतंत्रता नहीं मिलेगी ऐसा उन्हें लगता था.

उन दिनों भारत में कोई महिला डॉक्टर नहीं थी आनंदीबाई जोशी ने बड़ी जिद्दसे पढ़ाई कर एक डॉक्टर बनें लेकिन जब बीमारी में डॉक्टरी शिक्षा के साथ भारत आए थे और उसी स्थिति में उनकी मौत हो गयीं, दुखद बात यह है कि वे किसी भी रोगी की जांच नहीं कर सके, रखमा बाई ससुराल न आने कि स्थिती में उनके पति ने केस दर्जे की ब्रिटिश अदालत ने नतीजे दे दिया कि हिन्दू धर्म के अनुसार उन्हे ससुराल जाना चाहिए, अगर वो नहीं जाते हैं, तो उन्हें अदालत का अपमान करने के लिए जेल भेज दिया जाएगा.

बहादुर रखमाबाई जेल जाने के लिए तैयार हो गई. बाद में, समाज के लोगों की मदत से उन्हें तलाक मिला 25 वर्ष की आयु में, रखमाबाई इंग्लैंड गई और एमडीभी बनी. उन्होंने मुंबई के कामा अस्पताल में सूरतला और राजकोट में जीवनभर स्वास्थ्य सेवा की बाद में, वे आजीवन अविवाहित रहे उनका जीवन महिला अधिकार आंदोलन और स्वस्थ सेवा को समर्पित रहा आज, भारत उन्हें भूल गया है. लेकिन गूगल ने उनका सन्मान रखा.

[स्रोत- धनवंत मस्तुद]

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