प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री दुनियाँ को यह समझाने की कोशिश कर रही है कि इंसान को जीवन में रौशनी की कीमत तभी समझ में आती है जब उसने घोर अंधेरे का सामना करा हो। कवियत्री सोचती है न जाने कितनी ऐसी बातें है जिसका उत्तर हमे पता नहीं। न जाने कितने ऐसे वादे है जो हम अपनों से बिना कुछ सोचे समझे ही कर देते है। हम जन्मो के रिश्तो की बात करते है और आज जो रिश्ते हमारे साथ है हम उनके साथ तो निभा नहीं पाते।
अब आप इस कविता का आनंद ले।
रौशनी की कीमत का एहसास, अंधेरे के बाद ही होता है।
दिन भर की थकान, मिटाने की उम्मीद में ही तो,
इंसान फिर रात में चैन से सोता है।
यूँ ही तो ख़त्म हो जाते है, ज़िन्दगी के पड़ाव।
बचपन से जवानी, जवानी से बुढ़ापा,
जैसे शायद एक पल में ही आ जाता है।
बीते दिनों की याद दिलाकर,
वो अक्सर हमे, उसकी याद में रुलाता है।
अब बीते दिन तो हम वापिस ला नहीं सकते,
आगे आने वाले सफर की बस राह ही हम तकते।
अब वो सफर कैसा होगा, ये हमे पता नहीं।
भूल जाते है अक्सर ,जन्मो जन्मान्तर के बंधन,
इसमें हमारी तो कोई खता नहीं।
सब कुछ भूल पुराना, हम फिर से यहाँ जन्म लेते है।
अपनों के खातिर, हम अपनों से अक्सर ये कह देते है।
तुम्हारा और मेरा बंधन जन्मो जन्मांतर तक जायेगा।
मगर अगला जन्म लेते ही,
क्या प्राणी अपना पुराना बंधन याद रख पायेगा?
जब कुछ पता ही नहीं, तो ऐसा वादा ही क्यों करना?
छोड़ यहाँ सब कुछ, एक दिन सबको ही है मरना।
इसलिए बस आज की सोचो,
अपने को बता कर महान, तुम दूसरे को हर बात पर मत टोको।
धन्यवाद।