फिर भी

हकीकत और सपना

प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री दुनियाँ को यह समझाने की कोशिश कर रही है कि इंसान अपने सपने को हकीकत बनाने के चक्कर में कभी-कभी हकीकत को भूल जाता है। सफलता तो सबको ही मिलती है मगर क्या एक सी ही सफलता सबको मिलती है?नहीं क्योंकि सबको यहाँ अपने कर्मो का हिसाब चुकाना पड़ता है और जो इस बात की गहराई को वक़्त पर समझ ले वो ही जीवन में तेज़ी से आगे बढ़ता है।

अब आप इस कविता का आनंद ले

हकीकत और सपने में फर्क तो होता है।
अपने सपने को हकीकत बनाने में,
हर इंसान ही यहाँ अपनी सुद्ध-बुद्ध खोता है।
हकीकत को अपने सपने से विपरीत पाकर ही,
इंसान अक्सर यहाँ रोता है।
कड़ी परिश्रम कर, फिर उससे मिली सफलता को पाकर ही,
इंसान जीवन के अंत तक चैन की नींद सोता है।
इस दुनियाँ में कोई किसी का अपना नहीं होता है।
सबको अपनी मंज़िल खुदही तह करनी होती है।
प्रत्येक आत्मा यहाँ, अपने ही किये पापो का बोझ ढोती है।
कुछ इस जन्म के कर्मो का,
तो कुछ पुराने कर्मो का हिसाब चुकाना पड़ता है।
उन हिसाबों की समाप्ति के होते-होते ही इंसान जीवन में आगे बढ़ता है।

धन्यवाद

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