फिर भी

राम और कृष्ण नाम से टेलीभिट्ठा गाँव की धरती हुई पावन

किशनगंज, दिघलबैंक:- बिहार के उत्तरी छोड़ पर स्थित यह प्यारा सा गाँव नेपाल व बंगाल सीमा से भी बिल्कुल सटा हुआ है। लिहाजा दोनों जगहों की सभ्यता यहाँ की आबोहवा में शहद सी घुली हुई है। धनतोला तथा करूवामनी पंचायत की सीमा पर बसे टेलीभिट्ठा गाँव के हनुमान मंदिर में कलशयात्रा के साथ 48 घण्टे का अखण्ड हरिनाम संकीर्तन सह अष्टयाम का सुभारम्भ बजरंग बली युवा शक्ति क्लब द्वारा हुआ। कलश यात्रा में 1001 कन्याओं ने अपने अपने माथे पर कलश उठाकर कलशयात्रा की शोभा में चार चांद लगा दिया। साथ साथ और भी श्रद्धालु अपने हाथों में भगवा झंडा लेकर चलते नज़र आ रहे थे।

सभी के मुखारबिंद से एक साथ राम व कृष्ण नाम के नारे एक साथ निकलने से पूरा वातावरण भव्य तरीके से गुंजायमान हो रहा था। ऐसा लग रहा था मानो जैसे स्वर्ग की सैर कर रहे हों। इस बीच कड़ी धूप ने कन्याओं व भक्तजनों की कठिन परीक्षा लेने की गुस्ताखी की, किन्तु भक्ति व आस्था के सामने यह सब नगण्य था। कलश यात्रा भुरलीभिट्ठा, गन्धर्वदंगा, बाँसबारी होते हुए कद्दूभित्ता नदी तक गयी, जहां पूरे मंत्रोचारण के बीच जल भरने का कार्य सम्पन्न हुआ।

उसी रास्ते पुनः कलश यात्रा यज्ञ स्थल को पहुची, जहाँ सबों को खिचड़ी खिलाकर उपवास तोड़ने को कहा गया। अष्टयाम के सह आयोजककर्ता बसन्त, रमेश, किशन, कृष्णा, बैद्यनाथ व अन्य ने कहा कि इस अष्टयाम में बिहार, बंगाल, नेपाल, व स्थानीय दलों की सहभागिता देखने को मिलेगी।

नेपाल व बंगाल से सटे बिहार के इन इलाकों में आपको विविधता नज़र आएगी। इन जगहों में नेपाल व बंगाल की अधिंकाश सभ्यता अपनाते लोग नज़र आएंगे। यही कारण है कि सुरूवा (बैशाखी) के आगमन से ठीक पहले इन इलाकों में नेपाल व बंगाल की तर्ज़ पर जगह जगह अष्टयाम सह हरिनाम संकीर्तन का आयोजन किया जाता है। बैशाखी के इस रंग भरे माहौल में हरे राम, हरे राम, हरे कृष्ण, कृष्णा कृष्ण, धुन अनायास ही अपनी और आकर्षति कर लेते हैं।

यहाँ के लोग इन धुनों में सब कुछ भूलकर थिरकते नज़र आते हैं। बिहार के इन सीमावर्ती इलाकों में बाहरी सभ्यताओं का संगम अनुठा आनंद का आभास कराता है। इस मंदिर की अगर बात की जाय तो यहां पिछले कई वर्षों से इसी महीने में अष्टयाम का आयोजन होता आया है। अमर राय, कैलाश हरिजन, उमाकांत ने बताया कि पूरे गांवों के लोग प्रत्येक वर्ष पूरे हर्षोल्लास के साथ अष्टयाम में अपना योगदान देते हैं। इस क्रम तन-मन-धन से भी लोग इसे सफल बनाने में जुटे नज़र आते हैं।

[स्रोत- निर्मल कुमार]

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