फिर भी

क्रोध की अग्नि में तुम न जलो

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प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री समाज को छोटी-छोटी बातो पर गुस्सा न करने की प्रेरणा दे रही है। वह कहती है हमे ऐसा लगता है की गुस्सा करने से बिगड़ती बात बन जायेगी मगर ऐसा बिलकुल नहीं है क्योंकि क्रोध की अग्नि सबको जला देती है। क्रोध को पाले रखने में हमारा खुद का ही नुक्सान होता है, तो क्या हुआ अगर दूसरा गुस्सा या गलत तरीके से बात करता है, ये तो सब जानते है की बूँद-बूँद करके ही सागर बनता है

वैसे ही अगर कोई एक शांति के मार्ग पर चलेगा उसे देख कर दूसरों को भी वैसे ही जीने की प्रेरणा मिलेगी। फिर एक दिन ऐसा भी आयेगा, जब पूरी दुनियाँ अपना जीवन शांति से बितायेगी । लेकिन शुरुआत हमें कही से तो करनी होगी। इतिहास गवाह है कि क्रोध कर किसी का भी भला नहीं हुआ और न कभी हो पायेगा।

अब आप इस कविता का आनंद ले।

क्रोध की अग्नि में, होता नहीं बल,
इसके जलते रहते निकलता न कोई हल।
तुम्हारे होश उड़ाकर,
ये तुम्हारी सुध-बुध खो देती है।
अपने जाल में फंसा कर,
ये बस पीड़ा ही तुम्हें देती है।

भरोसा न करना इस पर,
इसके हाथों अच्छे-अच्छे बर्बाद हो जाते हैं।
क्रोध की अग्नि में दूसरों को सताकर,
लोग अपनी नज़रों में ही गिर जाते है।

क्रोध जब क्रोध पर ही टूटता है,
अपनी ही चपेट में बंध कर,
क्रोध का अपना बल ही टूटता है।
शांति तो शांति के पथ पर ही मिलेगी।
किसी मासूम पर कर क्रोध,
तुम्हे शांति फिर कैसे मिलेगी??

क्रोध नहीं किसी का मित्र,
जो तुमको बचा लेगा।
अपने आगोश में लेकर,
वो तुम्हें फंसा देगा।
तो क्यों न तुम शांति को अपना मित्र बनाओ।
अपनी ही क्यों, दूसरों की ज़िन्दगी में भी,
तुम शांति के दिये जलाओ।

धन्यवाद, कृप्या आप ये कविता बहुत लोगो तक पहुँचाये जिससे बहुत लोग सही ज्ञान तक पहुँचे। हमारी सोच ही सब कुछ है हम जैसा सोचते है वैसे ही बन जाते है।

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