फिर भी

मेरी सच्ची सखी “मैं”

प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री दुनियाँ को यह समझाने कि कोशिश कर रही है कि हर इंसान का सच्चा दोस्त उसके अंदर की छुपा होता है लेकिन अपनी अज्ञानता के कारण हम उस दोस्त की आवाज़ सुन नहीं पाते। कवियत्री इस कविता द्वारा अपने उस सच्चे दोस्त का वर्णन कर रही है और उसका आभार प्रकट कर रही है।happy

वह सोचती है कि अपना अच्छा और बुरा सबको मालूम होता है कोई बाहर वाला नहीं अंदर से ही हर पल हमे कोई समझाता है कुछ लोग अपने अंदर की ही उस अच्छी आवाज़ को सुनते है तो कई लोग उस आवाज़ को नज़रअंदाज़ कर देते है। याद रखना अच्छाई और बुराई दोनों ही हमारे अंदर है अब ये आप पर निर्भर करता है आपको किसकी सुननी है। जिसके हाथो में अपने जीवन की डोर दोगे तुम वैसे ही बनते चले जाओगे।

अब आप इस कविता का आनंद ले।

अपने जीवन में मैंने खुदके लिए,
खुदसे अच्छा दोस्त कोई दूसरा नहीं पाया।
खुदसे लड़कर ये ख्याल मुझको अक्सर है आया।
मेरा सच्चा दोस्त मुझसे कही बाहर नहीं।
वो तो कही मुझमे ही बस्ता है।
मेरी शैतानियों को देख, वो भी कभी-कभी,
अकेले में मेरे संग, उन पलो को याद कर हँसता हैं।
उसे समझने को बनाया, ईश्वर ने मेरे दिल में रस्ता है।

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मुझे अक्सर डांटकर, वो मुझे सही राह दिखाता है।
रूठ भी जाओ तो प्यार से समझाकर, वो ही मुझे मनाता है।
ऐसा हक़ वो मेरे अलावा, किसी पर नहीं जताता है।
मुझे संभलता देख, वो भी अक्सर ख़ुशी से मुस्कुराता है।
अपने को कर रखा है उसके हवाले,
इस बात का फ़ायदा वो अक्सर उठाता है।

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उसके रहते मैंने खुदको, कभी अकेला नहीं पाया।
शीतल जल के जैसी ठंडी है उसकी छाया।
बनाकर उसे अपना सच्चा मित्र,
इस कवियत्री को भी करार है आया।
फिर अपने सच्चे मित्र का पता,
हर किसी ने क्यों नहीं लगाया??

धन्यवाद

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